तस्वीर पर शेर
तस्वीर को विषय बनाती
उर्दू शाइरी, इश्क़-ओ-आशिक़ी और सामान्य जीवन के फैले हुए तजरबात को अपने ख़ास रंगों में पेश करती है । तस्वीर को शाइरी में उस की ख़ूबसूरती, ख़ामोशी, भाव एवं अभिव्यक्ति की स्थिरता और गतिशीलता के अलावा और दूसरे अर्थों में रूपक के तौर पर इस्तेमाल किया गया है । तस्वीर यूँ तो किसी वस्तु का अक्स ही होता है, लेकिन उस को देखते हुए हम जहाँ उस से प्रभावित होते हैं वहीं यूँ भी होता है किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती । तस्वीर उर्दू शाइरी में महबूब का रूपक भी बनती है, और उस से एक विषय के तौर पर आशिक़ की बेचैनी और कश-मकश की सूरतें सामने आती हैं । इस तरह के अलग-अलग और फैले हुए तजरबे से लुत्फ़ हासिल करने के लिए यहाँ तस्वीर-शाइरी का एक संकलन प्रस्तुत किया जा रहा है ।
आप ने तस्वीर भेजी मैं ने देखी ग़ौर से
हर अदा अच्छी ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं
रंग दरकार थे हम को तिरी ख़ामोशी के
एक आवाज़ की तस्वीर बनानी थी हमें
हर्फ़ को लफ़्ज़ न कर लफ़्ज़ को इज़हार न दे
कोई तस्वीर मुकम्मल न बना उस के लिए
मैं लाख इसे ताज़ा रखूँ दिल के लहू से
लेकिन तिरी तस्वीर ख़याली ही रहेगी
आ कि मैं देख लूँ खोया हुआ चेहरा अपना
मुझ से छुप कर मिरी तस्वीर बनाने वाले
शहर हो दश्त-ए-तमन्ना हो कि दरिया का सफ़र
तेरी तस्वीर को सीने से लगा रक्खा है
अपनी तस्वीर बनाओगे तो होगा एहसास
कितना दुश्वार है ख़ुद को कोई चेहरा देना
भेज दी तस्वीर अपनी उन को ये लिख कर 'शकील'
आप की मर्ज़ी है चाहे जिस नज़र से देखिए
कोई तस्वीर मुकम्मल नहीं होने पाती
धूप देते हैं तो साया नहीं रहने देते
उठाओ कैमरा तस्वीर खींच लो इन की
उदास लोग कहाँ रोज़ मुस्कुराते हैं
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अपने जैसी कोई तस्वीर बनानी थी मुझे
मिरे अंदर से सभी रंग तुम्हारे निकले
अलमारी में तस्वीरें रखता हूँ
अब बचपन और बुढ़ापा एक हुए
आज तो ऐसे बिजली चमकी बारिश आई खिड़की भीगी
जैसे बादल खींच रहा हो मेरे अश्कों की तस्वीरें
तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत
हम जहाँ में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं
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कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए
उस की तस्वीर हटा दी जाए
दिल के आईने में है तस्वीर-ए-यार
जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली
प्यार गया तो कैसे मिलते रंग से रंग और ख़्वाब से ख़्वाब
एक मुकम्मल घर के अंदर हर तस्वीर अधूरी थी
दिल्ली के न थे कूचे औराक़-ए-मुसव्वर थे
जो शक्ल नज़र आई तस्वीर नज़र आई
जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर
वो तस्वीर बातें बनाने लगी
ज़िंदगी भर के लिए रूठ के जाने वाले
मैं अभी तक तिरी तस्वीर लिए बैठा हूँ
वो अयादत को तो आया था मगर जाते हुए
अपनी तस्वीरें भी कमरे से उठा कर ले गया
इक बार तुझे अक़्ल ने चाहा था भुलाना
सौ बार जुनूँ ने तिरी तस्वीर दिखा दी
व्याख्या
इस शे’र में इश्क़ की घटना को अक़्ल और जुनूँ के पैमानों में तौलने का पहलू बहुत दिलचस्प है। इश्क़ के मामले में अक़्ल और उन्माद का द्वंद शाश्वत है। जहाँ अक़्ल इश्क़ को मानव जीवन के लिए हानि का एक कारण मानती है वहीं उन्माद इश्क़ को मानव जीवन का सार मानती है।और अगर इश्क़ में उन्माद पर अक़्ल हावी हो गया तो इश्क़ इश्क़ नहीं रहता क्योंकि इश्क़ की पहली शर्त जुनून है। और जुनून का ठिकाना दिल है। इसलिए अगर आशिक़ दिल के बजाय अक़्ल की सुने तो वो अपने उद्देश्य में कभी कामयाब नहीं होगा।
शायर कहना चाहता है कि मैं अपने महबूब के इश्क़ में इस क़दर मजनूं हो गया हूँ कि उसे भुलाने के लिए अक़्ल ने एक बार ठान ली थी मगर मेरे इश्क़ के जुनून ने मुझे सौ बार अपने महबूब की तस्वीर दिखा दी। “तस्वीर दिखा” भी ख़ूब है। क्योंकि उन्माद की स्थिति में इंसान एक ऐसी स्थिति से दो-चार होजाता है जब उसकी आँखों के सामने कुछ ऐसी चीज़ें दिखाई देती हैं जो यद्यपि वहाँ मौजूद नहीं होती हैं मगर इस तरह के जुनून में मुब्तला इंसान उन्हें हक़ीक़त समझता है। शे’र अपनी स्थिति की दृष्टि से बहुत दिलचस्प है।
शफ़क़ सुपुरी
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कल तेरी तस्वीर मुकम्मल की मैं ने
फ़ौरन उस पर तितली आ कर बैठ गई
एक कमी थी ताज-महल में
मैं ने तिरी तस्वीर लगा दी
मुझे ये ज़ोम कि मैं हुस्न का मुसव्विर हूँ
उन्हें ये नाज़ कि तस्वीर तो हमारी है
हम हैं उस के ख़याल की तस्वीर
जिस की तस्वीर है ख़याल अपना
सोचता हूँ तिरी तस्वीर दिखा दूँ उस को
रौशनी ने कभी साया नहीं देखा अपना
ख़ामुशी तेरी मिरी जान लिए लेती है
अपनी तस्वीर से बाहर तुझे आना होगा
मुझ को अक्सर उदास करती है
एक तस्वीर मुस्कुराती हुई
गरमा सकीं न चाहतें तेरा कठोर जिस्म
हर इक जल के बुझ गई तस्वीर संग में
आता था जिस को देख के तस्वीर का ख़याल
अब तो वो कील भी मिरी दीवार में नहीं
इक मोहब्बत की ये तस्वीर है दो रंगों में
शौक़ सब मेरा है और सारी हया उस की है
रंग ख़ुश्बू और मौसम का बहाना हो गया
अपनी ही तस्वीर में चेहरा पुराना हो गया
मुद्दतों बाद उठाए थे पुराने काग़ज़
साथ तेरे मिरी तस्वीर निकल आई है
देखना पड़ती है ख़ुद ही अक्स की सूरत-गरी
आइना कैसे बताए आइने में कौन है
चुप-चाप सुनती रहती है पहरों शब-ए-फ़िराक़
तस्वीर-ए-यार को है मिरी गुफ़्तुगू पसंद
तिरी तस्वीर तो वा'दे के दिन खिंचने के क़ाबिल है
कि शर्माई हुई आँखें हैं घबराया हुआ दिल है
जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी
देखा तो वो तस्वीर हर इक दिल से लगी थी
मैं ने तो यूँही राख में फेरी थीं उँगलियाँ
देखा जो ग़ौर से तिरी तस्वीर बन गई
ख़ुशबू गिरफ़्त-ए-अक्स में लाया और उस के बाद
मैं देखता रहा तिरी तस्वीर थक गई
रफ़्ता रफ़्ता सब तस्वीरें धुँदली होने लगती हैं
कितने चेहरे एक पुराने एल्बम में मर जाते हैं
ताब-ए-नज़्ज़ारा नहीं आइना क्या देखने दूँ
और बन जाएँगे तस्वीर जो हैराँ होंगे
सूरत छुपाइए किसी सूरत-परस्त से
हम दिल में नक़्श आप की तस्वीर कर चुके
कहीं ऐसा न हो कम-बख़्त में जान आ जाए
इस लिए हाथ में लेते मिरी तस्वीर नहीं
चाहिए उस का तसव्वुर ही से नक़्शा खींचना
देख कर तस्वीर को तस्वीर फिर खींची तो क्या
रोज़ है दर्द-ए-मोहब्बत का निराला अंदाज़
रोज़ दिल में तिरी तस्वीर बदल जाती है