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रद करें डाउनलोड शेर

तस्वीर पर शेर

तस्वीर को विषय बनाती

उर्दू शाइरी, इश्क़-ओ-आशिक़ी और सामान्य जीवन के फैले हुए तजरबात को अपने ख़ास रंगों में पेश करती है । तस्वीर को शाइरी में उस की ख़ूबसूरती, ख़ामोशी, भाव एवं अभिव्यक्ति की स्थिरता और गतिशीलता के अलावा और दूसरे अर्थों में रूपक के तौर पर इस्तेमाल किया गया है । तस्वीर यूँ तो किसी वस्तु का अक्स ही होता है, लेकिन उस को देखते हुए हम जहाँ उस से प्रभावित होते हैं वहीं यूँ भी होता है किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती । तस्वीर उर्दू शाइरी में महबूब का रूपक भी बनती है, और उस से एक विषय के तौर पर आशिक़ की बेचैनी और कश-मकश की सूरतें सामने आती हैं । इस तरह के अलग-अलग और फैले हुए तजरबे से लुत्फ़ हासिल करने के लिए यहाँ तस्वीर-शाइरी का एक संकलन प्रस्तुत किया जा रहा है ।

तेरी सूरत से किसी की नहीं मिलती सूरत

हम जहाँ में तिरी तस्वीर लिए फिरते हैं

इमाम बख़्श नासिख़

आप ने तस्वीर भेजी मैं ने देखी ग़ौर से

हर अदा अच्छी ख़मोशी की अदा अच्छी नहीं

जलील मानिकपूरी

ज़िंदगी भर के लिए रूठ के जाने वाले

मैं अभी तक तिरी तस्वीर लिए बैठा हूँ

क़ैसर-उल जाफ़री

रंग ख़ुश्बू और मौसम का बहाना हो गया

अपनी ही तस्वीर में चेहरा पुराना हो गया

खालिद गनी

चुप-चाप सुनती रहती है पहरों शब-ए-फ़िराक़

तस्वीर-ए-यार को है मिरी गुफ़्तुगू पसंद

दाग़ देहलवी

अपने जैसी कोई तस्वीर बनानी थी मुझे

मिरे अंदर से सभी रंग तुम्हारे निकले

सालिम सलीम

जो चुप-चाप रहती थी दीवार पर

वो तस्वीर बातें बनाने लगी

आदिल मंसूरी

मुझ को अक्सर उदास करती है

एक तस्वीर मुस्कुराती हुई

विकास शर्मा राज़

एक कमी थी ताज-महल में

मैं ने तिरी तस्वीर लगा दी

कैफ़ भोपाली

भेज दी तस्वीर अपनी उन को ये लिख कर 'शकील'

आप की मर्ज़ी है चाहे जिस नज़र से देखिए

शकील बदायूनी

अपनी तस्वीर बनाओगे तो होगा एहसास

कितना दुश्वार है ख़ुद को कोई चेहरा देना

अज़हर इनायती

कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए

उस की तस्वीर हटा दी जाए

मोहम्मद अल्वी

इक बार तुझे अक़्ल ने चाहा था भुलाना

सौ बार जुनूँ ने तिरी तस्वीर दिखा दी

व्याख्या

इस शे’र में इश्क़ की घटना को अक़्ल और जुनूँ के पैमानों में तौलने का पहलू बहुत दिलचस्प है। इश्क़ के मामले में अक़्ल और उन्माद का द्वंद शाश्वत है। जहाँ अक़्ल इश्क़ को मानव जीवन के लिए हानि का एक कारण मानती है वहीं उन्माद इश्क़ को मानव जीवन का सार मानती है।और अगर इश्क़ में उन्माद पर अक़्ल हावी हो गया तो इश्क़ इश्क़ नहीं रहता क्योंकि इश्क़ की पहली शर्त जुनून है। और जुनून का ठिकाना दिल है। इसलिए अगर आशिक़ दिल के बजाय अक़्ल की सुने तो वो अपने उद्देश्य में कभी कामयाब नहीं होगा।

शायर कहना चाहता है कि मैं अपने महबूब के इश्क़ में इस क़दर मजनूं हो गया हूँ कि उसे भुलाने के लिए अक़्ल ने एक बार ठान ली थी मगर मेरे इश्क़ के जुनून ने मुझे सौ बार अपने महबूब की तस्वीर दिखा दी। “तस्वीर दिखा” भी ख़ूब है। क्योंकि उन्माद की स्थिति में इंसान एक ऐसी स्थिति से दो-चार होजाता है जब उसकी आँखों के सामने कुछ ऐसी चीज़ें दिखाई देती हैं जो यद्यपि वहाँ मौजूद नहीं होती हैं मगर इस तरह के जुनून में मुब्तला इंसान उन्हें हक़ीक़त समझता है। शे’र अपनी स्थिति की दृष्टि से बहुत दिलचस्प है।

शफ़क़ सुपुरी

माहिर-उल क़ादरी

मैं ने तो यूँही राख में फेरी थीं उँगलियाँ

देखा जो ग़ौर से तिरी तस्वीर बन गई

सलीम बेताब

जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी

देखा तो वो तस्वीर हर इक दिल से लगी थी

अहमद फ़राज़

मुद्दतों बाद उठाए थे पुराने काग़ज़

साथ तेरे मिरी तस्वीर निकल आई है

साबिर दत्त

सोचता हूँ तिरी तस्वीर दिखा दूँ उस को

रौशनी ने कभी साया नहीं देखा अपना

इक़बाल अशहर

रंग दरकार थे हम को तिरी ख़ामोशी के

एक आवाज़ की तस्वीर बनानी थी हमें

नाज़िर वहीद

रफ़्ता रफ़्ता सब तस्वीरें धुँदली होने लगती हैं

कितने चेहरे एक पुराने एल्बम में मर जाते हैं

ख़ुशबीर सिंह शाद

मैं लाख इसे ताज़ा रखूँ दिल के लहू से

लेकिन तिरी तस्वीर ख़याली ही रहेगी

ज़ेब ग़ौरी

इक मोहब्बत की ये तस्वीर है दो रंगों में

शौक़ सब मेरा है और सारी हया उस की है

जावेद अख़्तर

ख़ामुशी तेरी मिरी जान लिए लेती है

अपनी तस्वीर से बाहर तुझे आना होगा

मोहम्मद अली साहिल

दिल के आईने में है तस्वीर-ए-यार

जब ज़रा गर्दन झुकाई देख ली

लाला मौजी राम मौजी

दिल्ली के थे कूचे औराक़-ए-मुसव्वर थे

जो शक्ल नज़र आई तस्वीर नज़र आई

मीर तक़ी मीर

चाहिए उस का तसव्वुर ही से नक़्शा खींचना

देख कर तस्वीर को तस्वीर फिर खींची तो क्या

बहादुर शाह ज़फ़र

मैं ने भी देखने की हद कर दी

वो भी तस्वीर से निकल आया

शहपर रसूल

कोई तस्वीर मुकम्मल नहीं होने पाती

धूप देते हैं तो साया नहीं रहने देते

अहमद मुश्ताक़

कि मैं देख लूँ खोया हुआ चेहरा अपना

मुझ से छुप कर मिरी तस्वीर बनाने वाले

अख़्तर सईद ख़ान

हम हैं उस के ख़याल की तस्वीर

जिस की तस्वीर है ख़याल अपना

फ़ानी बदायुनी

कह रही है ये तिरी तस्वीर भी

मैं किसी से बोलने वाली नहीं

नूह नारवी

लगता है कई रातों का जागा था मुसव्विर

तस्वीर की आँखों से थकन झाँक रही है

अज्ञात

आता था जिस को देख के तस्वीर का ख़याल

अब तो वो कील भी मिरी दीवार में नहीं

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

सूरत छुपाइए किसी सूरत-परस्त से

हम दिल में नक़्श आप की तस्वीर कर चुके

अनवर देहलवी

तस्वीर के दो रुख़ हैं जाँ और ग़म-ए-जानाँ

इक नक़्श छुपाना है इक नक़्श दिखाना है

जिगर मुरादाबादी

हर्फ़ को लफ़्ज़ कर लफ़्ज़ को इज़हार दे

कोई तस्वीर मुकम्मल बना उस के लिए

मोहम्मद अहमद रम्ज़

मुझे ये ज़ोम कि मैं हुस्न का मुसव्विर हूँ

उन्हें ये नाज़ कि तस्वीर तो हमारी है

शबनम रूमानी

वो अयादत को तो आया था मगर जाते हुए

अपनी तस्वीरें भी कमरे से उठा कर ले गया

अर्श सिद्दीक़ी

सूरत-ए-वस्ल निकलती किसी तदबीर के साथ

मेरी तस्वीर ही खिंचती तिरी तस्वीर के साथ

अज्ञात

कल तेरी तस्वीर मुकम्मल की मैं ने

फ़ौरन उस पर तितली कर बैठ गई

इरशाद ख़ान सिकंदर

प्यार गया तो कैसे मिलते रंग से रंग और ख़्वाब से ख़्वाब

एक मुकम्मल घर के अंदर हर तस्वीर अधूरी थी

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

तिरी तस्वीर तो वा'दे के दिन खिंचने के क़ाबिल है

कि शर्माई हुई आँखें हैं घबराया हुआ दिल है

नज़ीर इलाहाबादी

ख़ुशबू गिरफ़्त-ए-अक्स में लाया और उस के बाद

मैं देखता रहा तिरी तस्वीर थक गई

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

अलमारी में तस्वीरें रखता हूँ

अब बचपन और बुढ़ापा एक हुए

अख़्तर होशियारपुरी

रोज़ है दर्द-ए-मोहब्बत का निराला अंदाज़

रोज़ दिल में तिरी तस्वीर बदल जाती है

फ़ानी बदायुनी

ताब-ए-नज़्ज़ारा नहीं आइना क्या देखने दूँ

और बन जाएँगे तस्वीर जो हैराँ होंगे

मोमिन ख़ाँ मोमिन

कहीं ऐसा हो कम-बख़्त में जान जाए

इस लिए हाथ में लेते मिरी तस्वीर नहीं

मुबारक अज़ीमाबादी

शहर हो दश्त-ए-तमन्ना हो कि दरिया का सफ़र

तेरी तस्वीर को सीने से लगा रक्खा है

अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी

गरमा सकीं चाहतें तेरा कठोर जिस्म

हर इक जल के बुझ गई तस्वीर संग में

मुसव्विर सब्ज़वारी

देखना पड़ती है ख़ुद ही अक्स की सूरत-गरी

आइना कैसे बताए आइने में कौन है

अफ़ज़ल गौहर राव

उठाओ कैमरा तस्वीर खींच लो इन की

उदास लोग कहाँ रोज़ मुस्कुराते हैं

मालिकज़ादा जावेद

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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