अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी
ग़ज़ल 6
नज़्म 1
अशआर 6
न जाने कौन सी मंज़िल पे इश्क़ आ पहुँचा
दुआ भी काम न आए कोई दवा न लगे
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ज़मीर बेचने वाले वो तेरा सौदा-गर
ज़मीर ही नहीं ज़ात ओ सिफ़ात ले के गया
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शहर हो दश्त-ए-तमन्ना हो कि दरिया का सफ़र
तेरी तस्वीर को सीने से लगा रक्खा है
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ये बात सच है कि मरना सभी को है लेकिन
अलग ही होती है लज़्ज़त निगाह-ए-क़ातिल की
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डूबा सफ़ीना जिस में मुसाफ़िर कोई न था
लेकिन भरे हुए थे वहाँ ना-ख़ुदा बहुत
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