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सालिम सलीम

1985 | दिल्ली, भारत

नई नस्ल के महत्वपूर्ण शायर।

नई नस्ल के महत्वपूर्ण शायर।

सालिम सलीम

ग़ज़ल 95

नज़्म 1

 

अशआर 53

अपने जैसी कोई तस्वीर बनानी थी मुझे

मिरे अंदर से सभी रंग तुम्हारे निकले

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भरे बाज़ार में बैठा हूँ लिए जिंस-ए-वजूद

शर्त ये है कि मिरी ख़ाक की क़ीमत दी जाए

चटख़ के टूट गई है तो बन गई आवाज़

जो मेरे सीने में इक रोज़ ख़ामुशी हुई थी

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मैं घटता जा रहा हूँ अपने अंदर

तुम्हें इतना ज़ियादा कर लिया है

इक बर्फ़ सी जमी रहे दीवार-ओ-बाम पर

इक आग मेरे कमरे के अंदर लगी रहे

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नअत 1

 

पुस्तकें 262

वीडियो 12

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

सालिम सलीम

Badan simta hua aur dasht e jaan phela hua hai

सालिम सलीम

Ek naye shehr e khush aasar ki bimari hai

सालिम सलीम

Kuch bhi nahi hai baaqi bazar chal raha hai

सालिम सलीम

Yun to sab ke liye kya kya na ishaare nikle

सालिम सलीम

Zehen ki qaid se aazad kya jaaye use

सालिम सलीम

सालिम सलीम

Saalim Salim, a young Urdu poet from Delhi is reciting his ghazals at Rekhta Studio. सालिम सलीम

इक नए शहर-ए-ख़ुश-ए-आसार की बीमारी है

सालिम सलीम

कुछ भी नहीं है बाक़ी बाज़ार चल रहा है

सालिम सलीम

ज़ेहन की क़ैद से आज़ाद किया जाए उसे

सालिम सलीम

बदन सिमटा हुआ है और दश्त ऐ जां फैला हुआ है।

सालिम सलीम

हवा से इस्तिफ़ादा कर लिया है

सालिम सलीम

ऑडियो 8

कुछ भी नहीं है बाक़ी बाज़ार चल रहा है

काम हर रोज़ ये होता है किस आसानी से

दश्त की वीरानियों में ख़ेमा-ज़न होता हुआ

Recitation

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