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रद करें डाउनलोड शेर

दिल पर शेर

दिल शायरी के इस इन्तिख़ाब

को पढ़ते हुए आप अपने दिल की हालतों, कैफ़ियतों और सूरतों से गुज़़रेंगे और हैरान होंगे कि किस तरह किसी दूसरे, तीसरे आदमी का ये बयान दर-अस्ल आप के अपने दिल की हालत का बयान है। इस बयान में दिल की आरज़ुएँ हैं, उमंगें हैं, हौसले हैं, दिल की गहराइयों में जम जाने वाली उदासियाँ हैं, महरूमियाँ हैं, दिल की तबाह-हाली है, वस्ल की आस है, हिज्र का दुख है।

दर्द-ए-दिल क्या बयाँ करूँ 'रश्की'

उस को कब ए'तिबार आता है

मोहम्मद अली ख़ाँ रश्की

सुकून-ए-दिल के लिए इश्क़ तो बहाना था

वगरना थक के कहीं तो ठहर ही जाना था

फ़ातिमा हसन

इश्क़ की चोट का कुछ दिल पे असर हो तो सही

दर्द कम हो या ज़ियादा हो मगर हो तो सही

जलाल लखनवी

सुना है शहर में ज़ख़्मी दिलों का मेला है

चलेंगे हम भी मगर पैरहन रफ़ू कर के

मोहसिन नक़वी

अच्छी सूरत नज़र आते ही मचल जाता है

किसी आफ़त में डाले दिल-ए-नाशाद मुझे

जलील मानिकपूरी

दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से

इस घर को आग लग गई घर के चराग़ से

महताब राय ताबां

हंगामा-ए-हयात से जाँ-बर हो सका

ये दिल अजीब दिल है कि पत्थर हो सका

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

दिल देखते ही उस को गिरफ़्तार हो गया

रुस्वा-ए-शहर-ओ-कूचा-ओ-बाज़ार हो गया

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

दिल जहाँ बात करे दिल ही जहाँ बात सुने

कार-ए-दुश्वार है उस तर्ज़ में कहना अच्छा

अख़्तर हुसैन जाफ़री

दिल की बर्बादियों पे नाज़ाँ हूँ

फ़तह पा कर शिकस्त खाई है

शकील बदायूनी

हम को मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल

ज़िंदगी वगर्ना ज़माने में क्या था

आज़ाद अंसारी

दिल मिरा ख़्वाब-गाह-ए-दिलबर है

बस यही एक सोने का घर है

लाला माधव राम जौहर

डर गया है जी कुछ ऐसा हिज्र से

तुम जो पहलू से उठे दिल हिल गया

जलील मानिकपूरी

काम अब कोई आएगा बस इक दिल के सिवा

रास्ते बंद हैं सब कूचा-ए-क़ातिल के सिवा

अली सरदार जाफ़री

जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो

मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आएगा

बशीर बद्र

दिल उजड़ी हुई एक सराए की तरह है

अब लोग यहाँ रात जगाने नहीं आते

बशीर बद्र

मैं जितना ढूँढता हूँ उस को उतना ही नहीं पाता

किधर है किस तरफ़ है और कहाँ है दिल ख़ुदा जाने

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

क़ासिद नहीं ये काम तिरा अपनी राह ले

उस का पयाम दिल के सिवा कौन ला सके

ख़्वाजा मीर दर्द

दिल-ए-मरहूम को ख़ुदा बख़्शे

एक ही ग़म-गुसार था रहा

फ़ानी बदायुनी

मसअला ये है कि उस के दिल में घर कैसे करें

दरमियाँ के फ़ासले का तय सफ़र कैसे करें

फ़र्रुख़ जाफ़री

एक किरन बस रौशनियों में शरीक नहीं होती

दिल के बुझने से दुनिया तारीक नहीं होती

ज़ेब ग़ौरी

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है

आख़िर इस दर्द की दवा क्या है

मिर्ज़ा ग़ालिब

दिल उस की तार-ए-ज़ुल्फ़ के बल में उलझ गया

सुलझेगा किस तरह से ये बिस्तार है ग़ज़ब

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

एक सफ़र वो है जिस में

पाँव नहीं दिल थकता है

अहमद फ़राज़

दिल में हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती

ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती

निदा फ़ाज़ली

ख़फ़ा देखा है उस को ख़्वाब में दिल सख़्त मुज़्तर है

खिला दे देखिए क्या क्या गुल-ए-ताबीर-ए-ख़्वाब अपना

नज़ीर अकबराबादी

दिल वो सहरा है जहाँ हसरत-ए-साया भी नहीं

दिल वो दुनिया है जहाँ रंग है रानाई है

अता शाद

दम-ब-दम उठती हैं किस याद की लहरें दिल में

दर्द रह रह के ये करवट सी बदलता क्या है

जमाल पानीपती

आग़ाज़-ए-मोहब्बत का अंजाम बस इतना है

जब दिल में तमन्ना थी अब दिल ही तमन्ना है

जिगर मुरादाबादी

क्या रश्क है कि एक का है एक मुद्दई

तुम दिल में हो तो दर्द हमारे जिगर में है

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

दर्द हो दिल में तो दवा कीजे

और जो दिल ही हो तो क्या कीजे

मंज़र लखनवी

पूरी होती हैं तसव्वुर में उमीदें क्या क्या

दिल में सब कुछ है मगर पेश-ए-नज़र कुछ भी नहीं

लाला माधव राम जौहर

मोहब्बत रंग दे जाती है जब दिल दिल से मिलता है

मगर मुश्किल तो ये है दिल बड़ी मुश्किल से मिलता है

जलील मानिकपूरी

बेहतर तो है यही कि दुनिया से दिल लगे

पर क्या करें जो काम बे-दिल-लगी चले

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

मुझ को दिल पसंद वो बेवफ़ा पसंद

दोनों हैं ख़ुद-ग़रज़ मुझे दोनों हैं ना-पसंद

बेख़ुद देहलवी

रोज़-ए-जज़ा गिला तो क्या शुक्र-ए-सितम ही बन पड़ा

हाए कि दिल के दर्द ने दर्द को दिल बना दिया

फ़ानी बदायुनी

दिल में वो भीड़ है कि ज़रा भी नहीं जगह

आप आइए मगर कोई अरमाँ निकाल के

जलील मानिकपूरी

दिल लिया है तो ख़ुदा के लिए कह दो साहब

मुस्कुराते हो तुम्हीं पर मिरा शक जाता है

हबीब मूसवी

दिल दिया जिस ने किसी को वो हुआ साहिब-ए-दिल

हाथ जाती है खो देने से दौलत दिल की

आसी ग़ाज़ीपुरी

जी में जो आती है कर गुज़रो कहीं ऐसा हो

कल पशेमाँ हों कि क्यूँ दिल का कहा माना नहीं

अहमद फ़राज़

उन्हें अपने दिल की ख़बरें मिरे दिल से मिल रही हैं

मैं जो उन से रूठ जाऊँ तो पयाम तक पहुँचे

शकील बदायूनी

देखो दुनिया है दिल है

अपनी अपनी मंज़िल है

महबूब ख़िज़ां

आरज़ू तेरी बरक़रार रहे

दिल का क्या है रहा रहा रहा

हसरत मोहानी

वो बात ज़रा सी जिसे कहते हैं ग़म-ए-दिल

समझाने में इक उम्र गुज़र जाए है प्यारे

कलीम आजिज़

अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा

तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो

बशीर बद्र

ये दिल है मिरा या किसी कुटिया का दिया है

बुझता है दम-ए-सुब्ह तो जलता है सर-ए-शाम

हफ़ीज़ ताईब

या रहें इस में अपने घर की तरह

या मिरे दिल में आप घर करें

जोश मलसियानी

ख़मोशी दिल को है फ़ुर्क़त में दिन रात

घड़ी रहती है ये आठों पहर बंद

लाला माधव राम जौहर

दिल को मालूम है क्या बात बतानी है उसे

उस से क्या बात छुपानी है ज़बाँ जानती है

अरशद अब्दुल हमीद

दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है

लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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