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बहादुर शाह ज़फ़र

1775 - 1862 | दिल्ली, भारत

आख़िरी मुग़ल बादशाह। ग़ालिब और ज़ौक़ के समकालीन

आख़िरी मुग़ल बादशाह। ग़ालिब और ज़ौक़ के समकालीन

बहादुर शाह ज़फ़र

ग़ज़ल 52

अशआर 64

अब की जो राह-ए-मोहब्बत में उठाई तकलीफ़

सख़्त होती हमें मंज़िल कभी ऐसी तो थी

इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें

इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में

'ज़फ़र' आदमी उस को जानिएगा वो हो कैसा ही साहब-ए-फ़हम-ओ-ज़का

जिसे ऐश में याद-ए-ख़ुदा रही जिसे तैश में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा रहा

तमन्ना है ये दिल में जब तलक है दम में दम अपने

'ज़फ़र' मुँह से हमारे नाम उस का दम-ब-दम निकले

मेहनत से है अज़्मत कि ज़माने में नगीं को

बे-काविश-ए-सीना कभी नामवरी दी

पुस्तकें 86

चित्र शायरी 15

वीडियो 34

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या मुझे अफ़सर-ए-शाहाना बनाया होता

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लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में

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