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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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नाज़िर वहीद

ग़ज़ल 7

अशआर 9

रंग दरकार थे हम को तिरी ख़ामोशी के

एक आवाज़ की तस्वीर बनानी थी हमें

मुझ से ज़ियादा कौन तमाशा देख सकेगा

गाँधी-जी के तीनों बंदर मेरे अंदर

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पढ़ने वाला भी तो करता है किसी से मंसूब

सभी किरदार कहानी के नहीं होते हैं

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इक नए ग़म से किनारा भी तो हो सकता है

इश्क़ फिर हम को दोबारा भी तो हो सकता है

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लिखते लिखते ही लड़ी आँख जो रानी से मिरी

फिर तो राजा को निकलना था कहानी से मिरी

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