aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1937 | फतेहपुर, भारत
अब और देर न कर हश्र बरपा करने में
मिरी नज़र तिरे दीदार को तरसती है
चले थे जिस की तरफ़ वो निशान ख़त्म हुआ
सफ़र अधूरा रहा आसमान ख़त्म हुआ
कैसा इंसाँ तरस रहा है जीने को
कैसे साहिल पर इक मछली ज़िंदा है
हर एक साँस मुझे खींचती है उस की तरफ़
ये कौन मेरे लिए बे-क़रार रहता है
आता था जिस को देख के तस्वीर का ख़याल
अब तो वो कील भी मिरी दीवार में नहीं
Al-Kalam
2000
Gul-e-Sarsabad
Harf-e-Mukarrar
1997
Kulliyat-e-Rahi
2012
La Makan
ला मकान
1937
Lamakan
Laraib
1973
La-Raib
ला-शुऊर
2006
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