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Ghulam Murtaza Rahi's Photo'

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

1937 | फतेहपुर, भारत

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

ग़ज़ल 38

अशआर 49

अब और देर कर हश्र बरपा करने में

मिरी नज़र तिरे दीदार को तरसती है

चले थे जिस की तरफ़ वो निशान ख़त्म हुआ

सफ़र अधूरा रहा आसमान ख़त्म हुआ

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कैसा इंसाँ तरस रहा है जीने को

कैसे साहिल पर इक मछली ज़िंदा है

हर एक साँस मुझे खींचती है उस की तरफ़

ये कौन मेरे लिए बे-क़रार रहता है

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आता था जिस को देख के तस्वीर का ख़याल

अब तो वो कील भी मिरी दीवार में नहीं

पुस्तकें 13

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