मोहम्मद अहमद रम्ज़
ग़ज़ल 37
अशआर 11
हर्फ़ को लफ़्ज़ न कर लफ़्ज़ को इज़हार न दे
कोई तस्वीर मुकम्मल न बना उस के लिए
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अब के वस्ल का मौसम यूँही बेचैनी में बीत गया
उस के होंटों पर चाहत का फूल खिला भी कितनी देर
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अल्फ़ाज़ की गिरफ़्त से है मावरा हनूज़
इक बात कह गया वो मगर कितने काम की
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