मुसव्विर सब्ज़वारी
ग़ज़ल 62
नज़्म 4
अशआर 32
गुज़रते पत्तों की चाप होगी तुम्हारे सेहन-ए-अना के अंदर
फ़सुर्दा यादों की बारिशें भी मुझे भुलाने के बाद होंगी
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वो सर्दियों की धूप की तरह ग़ुरूब हो गया
लिपट रही है याद जिस्म से लिहाफ़ की तरह
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सजनी की आँखों में छुप कर जब झाँका
बिन होली खेले ही साजन भीग गया
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