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दुनिया पर शेर

दुनिया को हम सबने अपनी

अपनी आँख से देखा और बर्ता है इस अमल में बहुत कुछ हमारा अपना है जो किसी और का नहीं और बहुत कुछ हमसे छूट गया है। दुनिया को मौज़ू बनाने वाले इस ख़ूबसूरत शेरी इन्तिख़ाब को पढ़ कर आप दुनिया से वाबस्ता ऐसे इसरार से वाक़िफ़ होंगे जिन तक रसाई सिर्फ़ तख़्लीक़ी अज़हान ही का मुक़द्दर है। इन अशआर को पढ़ कर आप दुनियाँ को एक बड़े सियाक़ में देखने के अहल होंगे।

देखा है ज़िंदगी को कुछ इतने क़रीब से

चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से

साहिर लुधियानवी

ये काएनात मिरे सामने है मिस्ल-ए-बिसात

कहीं जुनूँ में उलट दूँ इस जहान को मैं

अख़्तर उस्मान

इक नज़र का फ़साना है दुनिया

सौ कहानी है इक कहानी से

नुशूर वाहिदी

कर ही क्या सकती है दुनिया और तुझ को देख कर

देखती जाएगी और हैरान होती जाएगी

अमीर इमाम

जिस की हवस के वास्ते दुनिया हुई अज़ीज़

वापस हुए तो उस की मोहब्बत ख़फ़ा मिली

साक़ी फ़ारुक़ी

कर ही क्या सकती है दुनिया और तुझ को देख कर

देखती जाएगी और हैरान होती जाएगी

अमीर इमाम

ज़माने की कशाकश का दिया पैहम पता मुझ को

कहीं टूटे हुए दिल ने कहीं टूटे हुए सर ने

अम्न लख़नवी

भूल शायद बहुत बड़ी कर ली

दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली

बशीर बद्र

कोई दिन और ग़म-ए-हिज्र में शादाँ हो लें

अभी कुछ दिन में समझ जाएँगे दुनिया क्या है

महमूद अयाज़

ये दुनिया है यहाँ असली कहानी पुश्त पर रखना

लबों पर प्यास रखना और पानी पुश्त पर रखना

एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी

ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना

ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते

अख़्तर शीरानी

कफ़-ए-अफ़्सोस मलने से भला अब फ़ाएदा क्या है

दिल-ए-राहत-तलब क्यूँ हम कहते थे ये दुनिया है

अफ़ज़ाल सरस्वी

दुनिया बदल रही है ज़माने के साथ साथ

अब रोज़ रोज़ देखने वाला कहाँ से लाएँ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

गँवा दी उम्र जिस को जीतने में

वो दुनिया मेरी जाँ तेरी मेरी

अमीता परसुराम मीता

फिर से ख़ुदा बनाएगा कोई नया जहाँ

दुनिया को यूँ मिटाएगी इक्कीसवीं सदी

बशीर बद्र

दुनिया की क्या चाह करें

दुनिया आनी-जानी है

तनवीर गौहर

लाई है कहाँ मुझ को तबीअत की दो-रंगी

दुनिया का तलबगार भी दुनिया से ख़फ़ा भी

मिद्हत-उल-अख़्तर

गाँव की आँख से बस्ती की नज़र से देखा

एक ही रंग है दुनिया को जिधर से देखा

असअ'द बदायुनी

क़लंदरी मिरी पूछो हो दोस्तान-ए-जुनूँ

हर आस्ताँ मिरी ठोकर से जाना जाता है

शहाब जाफ़री

ये दुनिया है यहाँ हर आबगीना टूट जाता है

कहीं छुपते फिरो आख़िर ज़माना ढूँढ ही लेगा

अताउर्रहमान जमील

बस हम दोनों ज़िंदा हैं

बाक़ी दुनिया फ़ानी है

नज़ीर क़ैसर

हम दुनिया से जब तंग आया करते हैं

अपने साथ इक शाम मनाया करते हैं

तैमूर हसन

इक ख़्वाब का ख़याल है दुनिया कहें जिसे

है इस में इक तिलिस्म तमन्ना कहें जिसे

दत्तात्रिया कैफ़ी

दुनिया है सँभल के दिल लगाना

याँ लोग अजब अजब मिलेंगे

मीर हसन

ख़ुदा जाने ये दुनिया जल्वा-गाह-ए-नाज़ है किस की

हज़ारों उठ गए लेकिन वही रौनक़ है मज्लिस की

अज्ञात

दुनिया ने ज़र के वास्ते क्या कुछ नहीं किया

और हम ने शायरी के सिवा कुछ नहीं किया

इक़बाल साजिद

दुनिया बहुत ख़राब है जा-ए-गुज़र नहीं

बिस्तर उठाओ रहने के क़ाबिल ये घर नहीं

लाला माधव राम जौहर

एक मैं हूँ कि इस आशोब-ए-नवा में चुप हूँ

वर्ना दुनिया मिरे ज़ख़्मों की ज़बाँ बोलती है

इरफ़ान सिद्दीक़ी

हम कि अपनी राह का पत्थर समझते हैं उसे

हम से जाने किस लिए दुनिया ठुकराई गई

ख़ुर्शीद रिज़वी

हाथ दुनिया का भी है दिल की ख़राबी में बहुत

फिर भी दोस्त तिरी एक नज़र से कम है

इदरीस बाबर

मुझ पे हो कर गुज़र गई दुनिया

मैं तिरी राह से हटा ही नहीं

फ़हमी बदायूनी

इक दर्द-ए-मोहब्बत है कि जाता नहीं वर्ना

जिस दर्द की ढूँडे कोई दुनिया में दवा है

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

उमीद-ओ-बीम के मेहवर से हट के देखते हैं

ज़रा सी देर को दुनिया से कट के देखते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मिरी तो सारी दुनिया बस तुम्ही हो

ग़लत क्या है जो दुनिया-दार हूँ मैं

रहमान फ़ारिस

जुस्तुजू जिस की थी उस को तो पाया हम ने

इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने

शहरयार

दुनिया तो है दुनिया कि वो दुश्मन है सदा की

सौ बार तिरे इश्क़ में हम ख़ुद से लड़े हैं

जलील ’आली’

दुनिया की रविश देखी तिरी ज़ुल्फ़-ए-दोता में

बनती है ये मुश्किल से बिगड़ती है ज़रा में

अज़ीज़ हैदराबादी

एक ख़्वाब-ओ-ख़याल है दुनिया

ए'तिबार-ए-नज़र को क्या कहिए

फ़िगार उन्नावी

थोड़ी सी अक़्ल लाए थे हम भी मगर 'अदम'

दुनिया के हादसात ने दीवाना कर दिया

अब्दुल हमीद अदम

बदल रहे हैं ज़माने के रंग क्या क्या देख

नज़र उठा कि ये दुनिया है देखने के लिए

आफ़ताब हुसैन

हम यक़ीनन यहाँ नहीं होंगे

ग़ालिबन ज़िंदगी रहेगी अभी

अबरार अहमद

मैं चाहता हूँ यहीं सारे फ़ैसले हो जाएँ

कि इस के ब'अद ये दुनिया कहाँ से लाऊँगा मैं

इरफ़ान सिद्दीक़ी

ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो

नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें

अहमद फ़राज़

दुनिया पसंद आने लगी दिल को अब बहुत

समझो कि अब ये बाग़ भी मुरझाने वाला है

जमाल एहसानी

चले तो पाँव के नीचे कुचल गई कोई शय

नशे की झोंक में देखा नहीं कि दुनिया है

शहाब जाफ़री

किस ख़राबी से ज़िंदगी 'फ़ानी'

इस जहान-ए-ख़राब में गुज़री

फ़ानी बदायुनी

मुकम्मल दास्ताँ का इख़्तिसार इतना ही काफ़ी है

सुलाया शोर-ए-दुनिया ने जगाया शोर-ए-महशर ने

अम्न लख़नवी

इस तमाशे का सबब वर्ना कहाँ बाक़ी है

अब भी कुछ लोग हैं ज़िंदा कि जहाँ बाक़ी है

फ़रियाद आज़र

दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ

बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ

अकबर इलाहाबादी

कुछ इस के सँवर जाने की तदबीर नहीं है

दुनिया है तिरी ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर नहीं है

हफ़ीज़ बनारसी

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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