सुकून पर शेर
ज़िंदगी में की जाने
वाली सारी जुस्तुजू का आख़िरी और वसी-तर हदफ़ सुकून ही होता है लेकिन सुकून एक आरिज़ी कैफ़ियत है। एक लमहे को सुकून मिलता भी है तो ख़त्म हो जाता है इसी लिए उस की तलाश का अमल भी मुस्तक़्बिल जारी रहता है। हम ने जिन शेरों का इन्तिख़ाब किया है वो एक गहरे इज़्तिराब और कशमकश के पैदा किए हुए हैं आप इन्हें पढ़िए और ज़िंदगी की बे-नक़ाब हक़ीक़तों का मुशाहदा कीजिए।
बड़े सुकून से अफ़्सुर्दगी में रहता हूँ
मैं अपने सामने वाली गली में रहता हूँ
ग़म है तो कोई लुत्फ़ नहीं बिस्तर-ए-गुल पर
जी ख़ुश है तो काँटों पे भी आराम बहुत है
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मौत की गोद में जब तक नहीं तू सो जाता
तू 'सदा' चैन से हरगिज़ नहीं सोने वाला
क़रार दिल को सदा जिस के नाम से आया
वो आया भी तो किसी और काम से आया
सुकून दे न सकीं राहतें ज़माने की
जो नींद आई तिरे ग़म की छाँव में आई
किस ने पाया सुकून दुनिया में
ज़िंदगानी का सामना कर के
सुकून-ए-दिल के लिए इश्क़ तो बहाना था
वगरना थक के कहीं तो ठहर ही जाना था
हम को न मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल
ऐ ज़िंदगी वगर्ना ज़माने में क्या न था
ये किस अज़ाब में छोड़ा है तू ने इस दिल को
सुकून याद में तेरी न भूलने में क़रार
न जाने रूठ के बैठा है दिल का चैन कहाँ
मिले तो उस को हमारा कोई सलाम कहे
नाम होंटों पे तिरा आए तो राहत सी मिले
तू तसल्ली है दिलासा है दुआ है क्या है
मय-कदा है यहाँ सुकूँ से बैठ
कोई आफ़त इधर नहीं आती
मंज़िल पे भी पहुँच के मयस्सर नहीं सकूँ
मजबूर इस क़दर हैं शुऊर-ए-सफ़र से हम
मिला न घर से निकल कर भी चैन ऐ 'ज़ाहिद'
खुली फ़ज़ा में वही ज़हर था जो घर में था
किसे ख़बर कि अहल-ए-ग़म सुकून की तलाश में
शराब की तरफ़ गए शराब के लिए नहीं
सुकून-ए-दिल जहान-ए-बेश-ओ-कम में ढूँडने वाले
यहाँ हर चीज़ मिलती है सुकून-ए-दिल नहीं मिलता