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असद अली ख़ान क़लक़

1820 - 1879 | लखनऊ, भारत

अवध के आख़िरी नवाब वाजिद अली शाह के प्रमुख दरबारी और आफ़ताबुद्दौला शम्स-ए-जंग के ख़िताब से सम्मानित शायर

अवध के आख़िरी नवाब वाजिद अली शाह के प्रमुख दरबारी और आफ़ताबुद्दौला शम्स-ए-जंग के ख़िताब से सम्मानित शायर

असद अली ख़ान क़लक़

ग़ज़ल 53

अशआर 74

बे-ख़ुदी-ए-दिल मुझे ये भी ख़बर नहीं

किस दिन बहार आई मैं दीवाना कब हुआ

'क़लक़' ग़ज़लें पढ़ेंगे जा-ए-कुरआँ सब पस-ए-मुर्दन

हमारी क़ब्र पर जब मजमा-ए-अहल-ए-सुख़न होगा

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चला है छोड़ के तन्हा किधर तसव्वुर-ए-यार

शब-ए-फ़िराक़ में था तुझ से मश्ग़ला दिल का

फिर मुझ से इस तरह की कीजेगा दिल-लगी

ख़ैर इस घड़ी तो आप का मैं कर गया लिहाज़

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राह-ए-हक़ में खेल जाँ-बाज़ी है ज़ाहिर-परस्त

क्या तमाशा दार पर मंसूर ने नट का किया

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पुस्तकें 14

चित्र शायरी 1

 

ऑडियो 6

आश्ना होते ही उस इश्क़ ने मारा मुझ को

डोरा नहीं है सुरमे का चश्म-ए-सियाह में

था क़स्द-ए-क़त्ल-ए-ग़ैर मगर मैं तलब हुआ

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