बेचैनी पर शेर
दुनिया बेचैनियों के
ज़ह्र से बनी है शायद ही कोई शख़्स ऐसा मिले जिस ने इसका कड़वा ज़ह्र न चखा हो। लेकिन इस बेचैनी या तड़प के पीछे किसी महबूब का तसव्वुर हो तो बेचैनी से भी मोहब्बत हो जाना लाज़िमी है। अगर ये बेचैनी शायर के हिस्से में आ जाए तो क्या कहने। दिल की गहराइयों में उतरने वाले ऐसे ऐसे आशआर आने लगते हैं जिनकी कसक हमेशा याद रहती है, ऐसी होती है बेचैनी शायरीः
हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएँगे
अभी कुछ बे-क़रारी है सितारो तुम तो सो जाओ
बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भर
पलकों से लिख रहा था तिरा नाम चाँद पर
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं
हम को न मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल
ऐ ज़िंदगी वगर्ना ज़माने में क्या न था
न कर 'सौदा' तू शिकवा हम से दिल की बे-क़रारी का
मोहब्बत किस को देती है मियाँ आराम दुनिया में
तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल
इतना आसान तिरे इश्क़ का ग़म था ही नहीं
लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में
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बिछड़ गए तो ये दिल उम्र भर लगेगा नहीं
लगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं
रोए बग़ैर चारा न रोने की ताब है
क्या चीज़ उफ़ ये कैफ़ियत-ए-इज़्तिराब है
दिल को ख़ुदा की याद तले भी दबा चुका
कम-बख़्त फिर भी चैन न पाए तो क्या करूँ
कुछ मोहब्बत को न था चैन से रखना मंज़ूर
और कुछ उन की इनायात ने जीने न दिया
इश्क़ में बे-ताबियाँ होती हैं लेकिन ऐ 'हसन'
जिस क़दर बेचैन तुम हो उस क़दर कोई न हो
किसी पहलू नहीं चैन आता है उश्शाक़ को तेरे
तड़पते हैं फ़ुग़ाँ करते हैं और करवट बदलते हैं
आह क़ासिद तो अब तलक न फिरा
दिल धड़कता है क्या हुआ होगा
बताएँ क्या कि बेचैनी बढ़ाते हैं वही आ कर
बहुत बेचैन हम जिन के लिए मालूम होते हैं
मेरे दिल ने देखा है यूँ भी उन को उलझन में
बार बार कमरे में बार बार आँगन में