बेक़रारी पर शेर
यूँ तो हमारे जीवन में
बे-क़रारी अर्थात व्याकुलता के कारण कई हैं । लेकिन शायरी में बे-क़रारी की जिन परिस्थितियों का वर्णन हुआ है उनका रिश्ता इश्क़ में मिलने वाली व्यकुलता से है । ऐसी बहुत सी परिस्थितियों से हम गुज़रते हैं लेकिन उन्हें शब्द नहीं दे पाते । यहाँ प्रस्तुत संकलन में आप महसूस करेंगे कि कैसे शायरी एहसास और बेचैनी की इन परिस्थितियों को चित्रित करती है ।
हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएँगे
अभी कुछ बे-क़रारी है सितारो तुम तो सो जाओ
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं
हम को न मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल
ऐ ज़िंदगी वगर्ना ज़माने में क्या न था
न कर 'सौदा' तू शिकवा हम से दिल की बे-क़रारी का
मोहब्बत किस को देती है मियाँ आराम दुनिया में
तुझ को पा कर भी न कम हो सकी बे-ताबी-ए-दिल
इतना आसान तिरे इश्क़ का ग़म था ही नहीं
इक चुभन है कि जो बेचैन किए रहती है
ऐसा लगता है कि कुछ टूट गया है मुझ में
समझा लिया फ़रेब से मुझ को तो आप ने
दिल से तो पूछ लीजिए क्यूँ बे-क़रार है
जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा
ये सुकूँ का दौर-ए-शदीद है कोई बे-क़रार कहाँ रहा
सुना है तेरी महफ़िल में सुकून-ए-दिल भी मिलता है
मगर हम जब तिरी महफ़िल से आए बे-क़रार आए
दिल को ख़ुदा की याद तले भी दबा चुका
कम-बख़्त फिर भी चैन न पाए तो क्या करूँ
दर्द उल्फ़त का न हो तो ज़िंदगी का क्या मज़ा
आह-ओ-ज़ारी ज़िंदगी है बे-क़रारी ज़िंदगी
बेताब सा फिरता है कई रोज़ से 'आसी'
बेचारे ने फिर तुम को कहीं देख लिया है
नहीं इलाज-ए-ग़म-ए-हिज्र-ए-यार क्या कीजे
तड़प रहा है दिल-ए-बे-क़रार किया कीजे
दिल प्यार की नज़र के लिए बे-क़रार है
इक तीर इस तरफ़ भी ये ताज़ा शिकार है
हर एक साँस मुझे खींचती है उस की तरफ़
ये कौन मेरे लिए बे-क़रार रहता है
क़ौल 'आबरू' का था कि न जाऊँगा उस गली
हो कर के बे-क़रार देखो आज फिर गया
किसी तरह तो घटे दिल की बे-क़रारी भी
चलो वो चश्म नहीं कम से कम शराब तो हो
तड़प तड़प के तमन्ना में करवटें बदलीं
न पाया दिल ने हमारे क़रार सारी रात
तुम्हारे आशिक़ों में बे-क़रारी क्या ही फैली है
जिधर देखो जिगर थामे हुए दो-चार बैठे हैं
दिल को इस तरह देखने वाले
दिल अगर बे-क़रार हो जाए
जाने दे सब्र ओ क़रार ओ होश को
तू कहाँ ऐ बे-क़रारी जाएगी
शब-ए-फ़िराक़ कुछ ऐसा ख़याल-ए-यार रहा
कि रात भर दिल-ए-ग़म-दीदा बे-क़रार रहा
रात जाती है मान लो कहना
देर से दिल है बे-क़रार अपना
बे-क़रारी थी सब उम्मीद-ए-मुलाक़ात के साथ
अब वो अगली सी दराज़ी शब-ए-हिज्राँ में नहीं