जवानी पर शेर
उम्र का वह हिस्सा जो
उमंगों, आरज़ुओं और रंगीनियों से भरा होता है, जवानी है। जज़्बों की आंच से चट्टानों को भी पिघला देने का यक़ीन इस उम्र में सब से ज़ियादा होता है। चाहने और चाहे जाने के ख़्वाबों में डूबे रहने की यह उम्र शायरी के लिए किसी ख़ज़ाने से कम नहीं। इस उम्र का नशा किस शायर के कलाम में नहीं मिलता जवानी शायरी पूरे हुस्न और शबाब के साथ आपकी निगाह-ए-करम की मुन्तज़िर हैः
हाए 'सीमाब' उस की मजबूरी
जिस ने की हो शबाब में तौबा
गुदाज़-ए-इश्क़ नहीं कम जो मैं जवाँ न रहा
वही है आग मगर आग में धुआँ न रहा
वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें
ऐसी हैं जैसे ख़्वाब की बातें
ऐ हम-नफ़स न पूछ जवानी का माजरा
मौज-ए-नसीम थी इधर आई उधर गई
हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी
ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़
याद आओ मुझे लिल्लाह न तुम याद करो
मेरी और अपनी जवानी को न बर्बाद करो
अज़ाब होती हैं अक्सर शबाब की घड़ियाँ
गुलाब अपनी ही ख़ुश्बू से डरने लगते हैं
जवानी की दुआ लड़कों को ना-हक़ लोग देते हैं
यही लड़के मिटाते हैं जवानी को जवाँ हो कर
कम-सिनी में तो हसीं अहद-ए-वफ़ा करते हैं
भूल जाते हैं मगर सब जो शबाब आता है
तलातुम आरज़ू में है न तूफ़ाँ जुस्तुजू में है
जवानी का गुज़र जाना है दरिया का उतर जाना
तिरा शबाब रहे हम रहें शराब रहे
ये दौर ऐश का ता दौर-ए-आफ़्ताब रहे
मज़ा है अहद-ए-जवानी में सर पटकने का
लहू में फिर ये रवानी रहे रहे न रहे
ये हुस्न-ए-दिल-फ़रेब ये आलम शबाब का
गोया छलक रहा है पियाला शराब का
तेरे शबाब ने किया मुझ को जुनूँ से आश्ना
मेरे जुनूँ ने भर दिए रंग तिरी शबाब में
सँभाला होश तो मरने लगे हसीनों पर
हमें तो मौत ही आई शबाब के बदले
रगों में दौड़ती हैं बिजलियाँ लहू के एवज़
शबाब कहते हैं जिस चीज़ को क़यामत है
नौजवानी में पारसा होना
कैसा कार-ए-ज़बून है प्यारे
मुझ तक उस महफ़िल में फिर जाम-ए-शराब आने को है
उम्र-ए-रफ़्ता पलटी आती है शबाब आने को है
जवानी को बचा सकते तो हैं हर दाग़ से वाइ'ज़
मगर ऐसी जवानी को जवानी कौन कहता है
क्यूँ जवानी की मुझे याद आई
मैं ने इक ख़्वाब सा देखा क्या था
वो कुछ मुस्कुराना वो कुछ झेंप जाना
जवानी अदाएँ सिखाती हैं क्या क्या
ख़ामोश हो गईं जो उमंगें शबाब की
फिर जुरअत-ए-गुनाह न की हम भी चुप रहे
किस तरह जवानी में चलूँ राह पे नासेह
ये उम्र ही ऐसी है सुझाई नहीं देता
क्या याद कर के रोऊँ कि कैसा शबाब था
कुछ भी न था हवा थी कहानी थी ख़्वाब था
अब जो इक हसरत-ए-जवानी है
उम्र-ए-रफ़्ता की ये निशानी है
उफ़ वो तूफ़ान-ए-शबाब आह वो सीना तेरा
जिसे हर साँस में दब दब के उभरता देखा
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पीरी में वलवले वो कहाँ हैं शबाब के
इक धूप थी कि साथ गई आफ़्ताब के
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जब मिला कोई हसीं जान पर आफ़त आई
सौ जगह अहद-ए-जवानी में तबीअत आई
जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा
हया यक-लख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता
कहते हैं उम्र-ए-रफ़्ता कभी लौटती नहीं
जा मय-कदे से मेरी जवानी उठा के ला
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तलाक़ दे तो रहे हो इताब-ओ-क़हर के साथ
मिरा शबाब भी लौटा दो मेरी महर के साथ
अदा आई जफ़ा आई ग़ुरूर आया हिजाब आया
हज़ारों आफ़तें ले कर हसीनों पर शबाब आया
लोग कहते हैं कि बद-नामी से बचना चाहिए
कह दो बे इस के जवानी का मज़ा मिलता नहीं
बला है क़हर है आफ़त है फ़ित्ना है क़यामत है
हसीनों की जवानी को जवानी कौन कहता है
इक अदा मस्ताना सर से पाँव तक छाई हुई
उफ़ तिरी काफ़िर जवानी जोश पर आई हुई
हिज्र को हौसला और वस्ल को फ़ुर्सत दरकार
इक मोहब्बत के लिए एक जवानी कम है
ज़िक्र जब छिड़ गया क़यामत का
बात पहुँची तिरी जवानी तक
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झूट है सब तारीख़ हमेशा अपने को दुहराती है
अच्छा मेरा ख़्वाब-ए-जवानी थोड़ा सा दोहराए तो
तसव्वुर में भी अब वो बे-नक़ाब आते नहीं मुझ तक
क़यामत आ चुकी है लोग कहते हैं शबाब आया
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
एक बिगड़ी हुई तस्वीर-ए-जवानी हूँ मैं
क़यामत है तिरी उठती जवानी
ग़ज़ब ढाने लगीं नीची निगाहें
अजीब हाल था अहद-ए-शबाब में दिल का
मुझे गुनाह भी कार-ए-सवाब लगता था
है क़यामत तिरे शबाब का रंग
रंग बदलेगा फिर ज़माने का
तौबा तौबा ये बला-ख़ेज़ जवानी तौबा
देख कर उस बुत-ए-काफ़िर को ख़ुदा याद आया
नासेहा आशिक़ी में रख मा'ज़ूर
क्या करूँ आलम-ए-जवानी है
रात भी नींद भी कहानी भी
हाए क्या चीज़ है जवानी भी
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ
किसी का अहद-ए-जवानी में पारसा होना
क़सम ख़ुदा की ये तौहीन है जवानी की