Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

जुस्तुजू पर शेर

जुस्तुजू को विषय बनाने

वाली शाएरी बहुत दिलचस्प है। इस में जुस्तुजू, और उस की विविध सूरतें और तलाश में लगे हुए शख़्स की परिस्थितियाँ भी हैं और इसके परिणाम में हासिल होने वाले तजुर्बात भी। यह जुस्तजू प्रेम की भी है और प्रेमीका की भी, ख़ुदा की भी है, और स्वयं अपनी ज़ात की भी। इस शाएरी का वह पल सबसे अधिक दिलचस्प है जहाँ केवल जुस्तुजू ब-ज़ात-ए-ख़ुद जुस्तुजू का प्राप्तांक रह जाती है इसमें न किसी मंज़िल की खोज होती है और न ही किसी लक्ष्य का पीछा।

नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही

नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शख़्स मैं तेरी जुस्तुजू से

बे-ज़ार नहीं हूँ थक गया हूँ

जौन एलिया

जुस्तुजू जिस की थी उस को तो पाया हम ने

इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने

शहरयार

सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें

क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता

निदा फ़ाज़ली

पा सकेंगे उम्र भर जिस को

जुस्तुजू आज भी उसी की है

हबीब जालिब

तेरे बग़ैर भी तो ग़नीमत है ज़िंदगी

ख़ुद को गँवा के कौन तिरी जुस्तुजू करे

अहमद फ़राज़

तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली

मिरी दास्ताँ तिरी ज़ुल्फ़ है जो बिखर बिखर के सँवर गई

बशीर बद्र

जुस्तुजू करनी हर इक अम्र में नादानी है

जो कि पेशानी पे लिक्खी है वो पेश आनी है

इमाम बख़्श नासिख़

है जुस्तुजू कि ख़ूब से है ख़ूब-तर कहाँ

अब ठहरती है देखिए जा कर नज़र कहाँ

अल्ताफ़ हुसैन हाली

वर्ना इंसान मर गया होता

कोई बे-नाम जुस्तुजू है अभी

अदा जाफ़री

खोया है कुछ ज़रूर जो उस की तलाश में

हर चीज़ को इधर से उधर कर रहे हैं हम

अहमद मुश्ताक़

जुस्तुजू खोए हुओं की उम्र भर करते रहे

चाँद के हमराह हम हर शब सफ़र करते रहे

परवीन शाकिर

तमाम उम्र ख़ुशी की तलाश में गुज़री

तमाम उम्र तरसते रहे ख़ुशी के लिए

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

तुम्हारी आरज़ू में मैं ने अपनी आरज़ू की थी

ख़ुद अपनी जुस्तुजू का आप हासिल हो गया हूँ मैं

शहज़ाद अहमद

तलातुम आरज़ू में है तूफ़ाँ जुस्तुजू में है

जवानी का गुज़र जाना है दरिया का उतर जाना

तिलोकचंद महरूम

जिसे तुम ढूँडती रहती हो मुझ में

वो लड़का जाने कब का मर चुका है

त्रिपुरारि

हम कि मायूस नहीं हैं उन्हें पा ही लेंगे

लोग कहते हैं कि ढूँडे से ख़ुदा मिलता है

अर्श सिद्दीक़ी

तिरी तलाश में निकले तो इतनी दूर गए

कि हम से तय हुए फ़ासले जुदाई के

जुनैद हज़ीं लारी

ये ख़ुद-फ़रेबी-ए-एहसास-ए-आरज़ू तो नहीं

तिरी तलाश कहीं अपनी जुस्तुजू तो नहीं

उम्मीद फ़ाज़ली

निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ मिले मिले मिले

मज़े की चीज़ है ये ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मेरा

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मिरी तरह से मह-ओ-महर भी हैं आवारा

किसी हबीब की ये भी हैं जुस्तुजू करते

हैदर अली आतिश

मैं ये चाहता हूँ कि उम्र-भर रहे तिश्नगी मिरे इश्क़ में

कोई जुस्तुजू रहे दरमियाँ तिरे साथ भी तिरे बा'द भी

अज़हर फ़राग़

जिस हुस्न की है चश्म-ए-तमन्ना को जुस्तुजू

वो आफ़्ताब में है है माहताब में

असर सहबाई

मुझ को शौक़-ए-जुस्तुजू-ए-काएनात

ख़ाक से 'आदिल' ख़ला तक ले गया

महफूजुर्रहमान आदिल

मोहब्बत एक तरह की निरी समाजत है

मैं छोड़ूँ हूँ तिरी अब जुस्तुजू हुआ सो हुआ

हसरत अज़ीमाबादी

उम्र-ए-रफ़्ता जा किसी दीवार के साए में बैठ

बे-सबब की ख़्वाहिशें हैं और घर की जुस्तुजू

ख़ान रिज़वान

दर-ब-दर मारा-फिरा मैं जुस्तुजू-ए-यार में

ज़ाहिद-ए-काबा हुआ रहबान-ए-बुत-ख़ाना हुआ

हातिम अली मेहर

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए