हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे
तुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना
आँखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहब
वो अलग बाँध के रक्खा है जो माल अच्छा है
व्याख्या
इस शे’र में ग़ज़ब का चोंचाल है। यही चोंचाल उर्दू ग़ज़ल की परम्परा की विशेषता है। आँखें दिखाना द्विअर्थी है। एक मायनी तो ये है कि केवल आँखें दिखाते हो अर्थात मात्र आँखों का नज़ारा कराते हो। दूसरा अर्थ यह है कि केवल ग़ुस्सा करते हो क्योंकि आँखें दिखाना मुहावरा है और इसके कई मायनी हैं जैसे घूर कर देखना, क्रोध की दृष्टि से देखना, घुड़की देना, इशारा व संकेत करना, आँखों ही आँखों में बातें करना। मगर शे’र में जो व्यंग्य दिखाई देता है उसके अनुसार आँखें दिखाने को घुड़की देने अर्थात क्रोध से देखना ही समझना चाहिए।
जोबन के कई अर्थ हैं जैसे सुंदरता, चढ़ती जवानी, स्त्री की छाती अर्थात स्तन। जब ये कहा कि वो अलग बाँध के रखा है जो माल अच्छा है तो तात्पर्य स्तन से ही है क्योंकि जब आँख दिखाई तो स्पष्ट है कि चेहरा भी दिखाया और जब आमने सामने खड़े हो गए तो जैसे चढ़ती जवानी का नज़ारा भी हुआ। अगर कोई चीज़ जो शायर की जानकारी के अनुसार अच्छा माल है और जिसे बाँध के रखा गया है तो वह प्रियतम का स्तन ही हो सकता है।
इस तरह शे’र का अर्थ यह होता है कि तुम मुझे केवल ग़ुस्से से आँखें दिखाते हो और जो चीज़ देखने का मैं इच्छुक हूँ उसे अलग से बाँध कर रखा है।
शफ़क़ सुपुरी
उफ़ वो तूफ़ान-ए-शबाब आह वो सीना तेरा
जिसे हर साँस में दब दब के उभरता देखा
मैं ने जो कचकचा कर कल उन की रान काटी
तो उन ने किस मज़े से मेरी ज़बान काटी
तू किस के कमरे में थी
मैं तेरे कमरे में था