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लाला माधव राम जौहर

1810 - 1889

हर मौक़े पर याद आने वाले कई शेर देने वाले विख्यात शायर , मिर्ज़ा ग़ालिब के समकालीन।

हर मौक़े पर याद आने वाले कई शेर देने वाले विख्यात शायर , मिर्ज़ा ग़ालिब के समकालीन।

लाला माधव राम जौहर

ग़ज़ल 39

अशआर 174

भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया

ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं

ग़ैरों से तो फ़ुर्सत तुम्हें दिन रात नहीं है

हाँ मेरे लिए वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं है

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तुझ सा कोई जहान में नाज़ुक-बदन कहाँ

ये पंखुड़ी से होंट ये गुल सा बदन कहाँ

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लड़ने को दिल जो चाहे तो आँखें लड़ाइए

हो जंग भी अगर तो मज़ेदार जंग हो

दोस्त तुझ को रहम आए तो क्या करूँ

दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है

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पुस्तकें 1

 

चित्र शायरी 5

 

ऑडियो 6

आ गया दिल जो कहीं और ही सूरत होगी

थोड़ा है जिस क़दर मैं पढ़ूँ ख़त हबीब का

बुत-कदे में न तुझे काबे के अंदर पाया

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