जलालुद्दीन अकबर
ग़ज़ल 6
अशआर 5
तिरा वस्ल है मुझे बे-ख़ुदी तिरा हिज्र है मुझे आगही
तिरा वस्ल मुझ को फ़िराक़ है तिरा हिज्र मुझ को विसाल है
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ये भूल भी क्या भूल है ये याद भी क्या याद
तू याद है और कोई नहीं तेरे सिवा याद
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दिल को इस तरह देखने वाले
दिल अगर बे-क़रार हो जाए
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इश्क़ से है फ़रोग़-ए-रंग-ए-जहाँ
इब्तिदा हम हैं इंतिहा हैं हम
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ये काएनात ये बज़्म-ए-ज़ुहूर कुछ भी नहीं
तिरी नज़र में नहीं है जो नूर कुछ भी नहीं
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