मैं ने जब ख़ुद की तरफ़ ग़ौर से देखा तो खुला
मुझ को इक मेरे सिवा कोई परेशानी नहीं
बड़े बा-वफ़ा थे मिरे यार सब
मुसीबत में जब तक पुकारा न था
कहीं कोई कमाँ ताने हुए है
कबूतर आड़े-तिरछे उड़ रहे हैं
बस हुक्म मिला और निकल आए वहाँ से
चलते हुए उजलत में ही सामान लिया है
मनहूस एक शक्ल है जिस से नहीं फ़रार
परछाईं की तरह से बराबर लगी हुई