सवाल पर शेर
सोचना और सवाल करना इन्सानी
ज़ेहन की पहली पहचान है। कभी दुनिया से, कभी ख़ुद से और कभी-कभी तो ख़ुद से भी सवाल करते रहने की आदत सी हो जाती है और अगर यह आद त शायरी में भी ढलने लगे तो निहायत दिलकश सवालनामे तैयार होने लगते हैं। सवाल जितने पेचीदा हों शायरी उतनी ही गहरी होती है या नहीं इसका अन्दाज़ा बहुत हद तक सवाल शायरी पढ़कर लगाया जा सकता है।
ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर
या वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो
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माँग लूँ तुझ से तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए
सौ सवालों से यही एक सवाल अच्छा है
क्यूँ परखते हो सवालों से जवाबों को 'अदीम'
होंट अच्छे हों तो समझो कि सवाल अच्छा है
खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझ को
जो चाहिए सो माँगिये अल्लाह से 'अमीर'
उस दर पे आबरू नहीं जाती सवाल से
ज़िंदगी इक सवाल है जिस का जवाब मौत है
मौत भी इक सवाल है जिस का जवाब कुछ नहीं
दिल से आती है बात लब पे 'हफ़ीज़'
बात दिल में कहाँ से आती है
सवाल कर के मैं ख़ुद ही बहुत पशेमाँ हूँ
जवाब दे के मुझे और शर्मसार न कर
कुछ कटी हिम्मत-ए-सवाल में उम्र
कुछ उमीद-ए-जवाब में गुज़री
दोस्त हर ऐब छुपा लेते हैं
कोई दुश्मन भी तिरा है कि नहीं
ग़म मुझे देते हो औरों की ख़ुशी के वास्ते
क्यूँ बुरे बनते हो तुम नाहक़ किसी के वास्ते
अक़्ल में जो घिर गया ला-इंतिहा क्यूँकर हुआ
जो समा में आ गया फिर वो ख़ुदा क्यूँकर हुआ
कभी कभी तो ये दिल में सवाल उठता है
कि इस जुदाई में क्या उस ने पा लिया होगा
सर-ए-महशर यही पूछूँगा ख़ुदा से पहले
तू ने रोका भी था बंदे को ख़ता से पहले
वो थे जवाब के साहिल पे मुंतज़िर लेकिन
समय की नाव में मेरा सवाल डूब गया
सवाल ये है कि आपस में हम मिलें कैसे
हमेशा साथ तो चलते हैं दो किनारे भी
क्या वो नमरूद की ख़ुदाई थी
बंदगी में मिरा भला न हुआ
जी चाहता है फिर कोई तुझ से करूँ सवाल
तेरी नहीं नहीं ने ग़ज़ब का मज़ा दिया
जवाज़ कोई अगर मेरी बंदगी का नहीं
मैं पूछता हूँ तुझे क्या मिला ख़ुदा हो कर
पत्थरो आज मिरे सर पे बरसते क्यूँ हो
मैं ने तुम को भी कभी अपना ख़ुदा रक्खा है
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न माँगिये जो ख़ुदा से तो माँगिये किस से
जो दे रहा है उसी से सवाल होता है
हम क्या करें सवाल ये सोचा नहीं अभी
वो क्या जवाब देंगे ये धड़का अभी से है
जवाब आए न आए सवाल उठा तो सही
फिर इस सवाल में पहलू नए सवाल के रख
जवाब सोच के वो दिल में मुस्कुराते हैं
अभी ज़बान पे मेरी सवाल भी तो न था
कैसे याद रही तुझ को
मेरी इक छोटी सी भूल
बहुत सी बातें ज़बाँ से कही नहीं जातीं
सवाल कर के उसे देखना ज़रूरी है
सवाल-ए-वस्ल पर कुछ सोच कर उस ने कहा मुझ से
अभी वादा तो कर सकते नहीं हैं हम मगर देखो
जवाब देता है मेरे हर इक सवाल का वो
मगर सवाल भी उस की तरफ़ से होता है
मुख़्तार मैं अगर हूँ तो मजबूर कौन है
मजबूर आप हैं तो किसे इख़्तियार है
जो सोते हैं नहीं कुछ ज़िक्र उन का वो तो सोते हैं
मगर जो जागते हैं उन में भी बेदार कितने हैं
अजीब तुर्फ़ा-तमाशा है मेरे अहद के लोग
सवाल करने से पहले जवाब माँगते हैं
तिरे जवाब का इतना मुझे मलाल नहीं
मगर सवाल जो पैदा हुआ जवाब के बाद
कोई सवाल न कर और कोई जवाब न पूछ
तू मुझ से अहद-ए-गुज़शता का अब हिसाब न पूछ
सवाल आ गए आँखों से छिन के होंटों पर
हमें जवाब न देने का फ़ाएदा तो मिला
हर तफ़्सील में जाने वाला ज़ेहन सवाल की ज़द पर है
हर तशरीह के पीछे है अंजाम से डर जाने का ग़म
उम्र ही तेरी गुज़र जाएगी उन के हल में
तेरा बच्चा जो सवालात लिए बैठा है