फ़सीह अकमल
ग़ज़ल 17
अशआर 12
उम्र भर मिलने नहीं देती हैं अब तो रंजिशें
वक़्त हम से रूठ जाने की अदा तक ले गया
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जिन्हें तारीख़ भी लिखते डरेगी
वो हंगामे यहाँ होने लगे हैं
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बहुत सी बातें ज़बाँ से कही नहीं जातीं
सवाल कर के उसे देखना ज़रूरी है
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हमारी फ़त्ह के अंदाज़ दुनिया से निराले हैं
कि परचम की जगह नेज़े पे अपना सर निकलता है
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मुद्दआ इज़हार से खुलता नहीं है
ये ज़बान-ए-बे-ज़बानी और है
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