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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मोहसिन असरार

1948 | पाकिस्तान

मोहसिन असरार

ग़ज़ल 27

अशआर 23

क्या ज़माना था कि हम ख़ूब जचा करते थे

अब तो माँगे की सी लगती हैं क़बाएँ अपनी

गुज़र चुका है ज़माना विसाल करने का

ये कोई वक़्त है तेरे कमाल करने का

घर में रहना मिरा गोया उसे मंज़ूर नहीं

जब भी आता है नया काम बता जाता है

मैं बैठ गया ख़ाक पे तस्वीर बनाने

जो किब्र थे मुझ में वो तिरी याद से निकले

वो मजबूरी मौत है जिस में कासे को बुनियाद मिले

प्यास की शिद्दत जब बढ़ती है डर लगता है पानी से

पुस्तकें 1

 

चित्र शायरी 3

 

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