वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल 49
अशआर 55
ज़ालिम की तो आदत है सताता ही रहेगा
अपनी भी तबीअत है बहलती ही रहेगी
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ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया
हमारी बेकसी को देख कर सारा जहाँ रोया
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कठिन है काम तो हिम्मत से काम ले ऐ दिल
बिगाड़ काम न मुश्किल समझ के मुश्किल को
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और इशरत की तमन्ना क्या करें
सामने तू हो तुझे देखा करें
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