aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1908 - 1991 | कराची, पाकिस्तान
अपने जलने में किसी को नहीं करते हैं शरीक
रात हो जाए तो हम शम्अ बुझा देते हैं
समझेगा आदमी को वहाँ कौन आदमी
बंदा जहाँ ख़ुदा को ख़ुदा मानता नहीं
इक रोज़ छीन लेगी हमीं से ज़मीं हमें
छीनेंगे क्या ज़मीं के ख़ज़ाने ज़मीं से हम
ग़लत-फ़हमियों में जवानी गुज़ारी
कभी वो न समझे कभी हम न समझे
आप के लब पे और वफ़ा की क़सम
क्या क़सम खाई है ख़ुदा की क़सम
Auraq-e-Gul
Awraq-e-Gul
1971
Charagh-e-Bahar
1983
Dast-e-Dua
2003
Dast-e-Zar Fashan
1985
Ham Kalam
Ghalib Ki Farsi Rubaiyat Ka Tarjuma
1986
ख़ुन्नाब
2004
मेरे हिस्से की रौशनी
2007
Qirtas-e-Alam
1996
Saba Akbarabadi Ke Marsiye
समझेगा आदमी को वहाँ कौन आदमी बंदा जहाँ ख़ुदा को ख़ुदा मानता नहीं
अपने जलने में किसी को नहीं करते हैं शरीक रात हो जाए तो हम शम्अ बुझा देते हैं
इक रोज़ छीन लेगी हमीं से ज़मीं हमें छीनेंगे क्या ज़मीं के ख़ज़ाने ज़मीं से हम
ये हमीं हैं कि तिरा दर्द छुपा कर दिल में काम दुनिया के ब-दस्तूर किए जाते हैं
Sign up and enjoy FREE unlimited access to a whole Universe of Urdu Poetry, Language Learning, Sufi Mysticism, Rare Texts
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books