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नासिर काज़मी
ग़ज़ल 111
अशआर 86
दिल धड़कने का सबब याद आया
वो तिरी याद थी अब याद आया
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आज देखा है तुझ को देर के बअ'द
आज का दिन गुज़र न जाए कहीं
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ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी
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वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है
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आरज़ू है कि तू यहाँ आए
और फिर उम्र भर न जाए कहीं
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पुस्तकें 55
चित्र शायरी 32
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक्ल तो दिखा गया वो दोस्ती तो ख़ैर अब नसीब-ए-दुश्मनाँ हुई वो छोटी छोटी रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गया जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया पुकारती हैं फ़ुर्सतें कहाँ गईं वो सोहबतें ज़मीं निगल गई उन्हें कि आसमान खा गया ये सुब्ह की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ अब आइने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गया ये किस ख़ुशी की रेत पर ग़मों को नींद आ गई वो लहर किस तरफ़ गई ये मैं कहाँ समा गया गए दिनों की लाश पर पड़े रहोगे कब तलक अलम-कशो उठो कि आफ़्ताब सर पे आ गया