हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं
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कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोई
तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया
सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा
मैं डूब भी गया तो शफ़क़ छोड़ जाऊँगा
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नहीं दुनिया को जब पर्वा हमारी
तो फिर दुनिया की पर्वा क्यूँ करें हम
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे
हम-सफ़र चाहिए हुजूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी क़ाफ़िला है मुझे
क्या है जो हो गया हूँ मैं थोड़ा बहुत ख़राब
थोड़ा बहुत ख़राब तो होना भी चाहिए
रास आने लगी दुनिया तो कहा दिल ने कि जा
अब तुझे दर्द की दौलत नहीं मिलने वाली
काश वो रास्ते में मिल जाए
मुझ को मुँह फेर कर गुज़रना है
क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उस से
वो जो इक शख़्स है मुँह फेर के जाने वाला
चाहिए है मुझे इंकार-ए-मोहब्बत मिरे दोस्त
लेकिन इस में तिरा इंकार नहीं चाहिए है