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सदा अम्बालवी

1951 | गुड़गाँव, भारत

राजेंद्र सिंह/लोकप्रिय शायर/अपनी गज़ल 'वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे' के लिए मशहूर, जिसे गाया गया है

राजेंद्र सिंह/लोकप्रिय शायर/अपनी गज़ल 'वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे' के लिए मशहूर, जिसे गाया गया है

सदा अम्बालवी

ग़ज़ल 115

नज़्म 38

अशआर 37

चमन में ख़ुश्क-साली पर है ख़ुश सय्याद कि अब ख़ुद

परिंदे पेट की ख़ातिर असीर-ए-दाम होते हैं

ढूँड अफ़्लाक नए और ज़मीनें भी नई

हो ग़ज़ल का तिरी हर शे'र नया हर्फ़-ब-हर्फ़

ज़िक्र गुल का कहीं है माहताब का है

तमाम शहर में चर्चा तिरे शबाब का है

बड़ा घाटे का सौदा है 'सदा' ये साँस लेना भी

बढ़े है उम्र ज्यूँ-ज्यूँ ज़िंदगी कम होती जाती है

रस्म-ए-दुनिया तो किसी तौर निभाते जाओ

दिल नहीं मिलते भी तो हाथ मिलाते जाओ

पुस्तकें 2

 

वीडियो 120

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अज्ञात

अज्ञात

गुलाम अब्बास खान

अज़ल के मुसव्विर से

बना बना के तू करता है क्यों फ़ना हम को अज्ञात

अज़ल के मुसव्विर से

बना बना के तू करता है क्यों फ़ना हम को अज्ञात

अज़ल के मुसव्विर से

बना बना के तू करता है क्यों फ़ना हम को राधिका चोपड़ा

अज़ल के मुसव्विर से

बना बना के तू करता है क्यों फ़ना हम को अज्ञात

अपने मरकज़ से कट गया हूँ मैं

अज्ञात

अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले

ग़ुलाम अब्बास

अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले

राधिका चोपड़ा

अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले

ग़ुलाम अब्बास

आओ कि अब तो जुरअत-ए-जुर्म-ए-सुख़न करें

गुलाम अब्बास खान

आँखों का है क़ुसूर अगर वो अयाँ नहीं

अज्ञात

आँखों का है क़ुसूर अगर वो अयाँ नहीं

ग़ुलाम अब्बास

आज फिर जीने का ऐ दोस्त इरादा कर तू

क्यों उजाले हैं निगाहों में तिरी चुभने लगे गुलाम अब्बास खान

आज फिर जीने का ऐ दोस्त इरादा कर तू

क्यों उजाले हैं निगाहों में तिरी चुभने लगे गुलाम अब्बास खान

आदमी पहले तो लाज़िम है कि इंसान बने

अज्ञात

आप की ओर इक नज़र देखा

अज्ञात

आप की ओर इक नज़र देखा

अज्ञात

आबले होंगे वो झट फूट के बहने वाले

ग़ुलाम अब्बास

इक उम्र की तलाश का क्या है सिला मिला

ग़ुलाम अब्बास

और क्या चाहिए जीने के लिए

कौन सी शय से है दुनिया तिरी महरूम बता अज्ञात

और क्या चाहिए जीने के लिए

कौन सी शय से है दुनिया तिरी महरूम बता अज्ञात

और क्या चाहिए जीने के लिए

कौन सी शय से है दुनिया तिरी महरूम बता गुलाम अब्बास खान

क़दम-क़दम पे तू ऐ राह-रौ क़याम न कर

अज्ञात

कब तक आँखें मूँद के बैठें

कब तक आँखें मूँद के बैठें कब तक धोका खाएँगे गुलाम अब्बास खान

कभी लगता है ज़र्रे के बराबर है बिसात अपनी

अज्ञात

क्या है हाथों की लकीरों में बताओ न मुझे

ग़ुलाम अब्बास

क्या है हाथों की लकीरों में बताओ न मुझे

ग़ुलाम अब्बास

क्यों कहीं बैठ के दम लेते नहीं एक घड़ी

किस तरफ़ दौड़े चले जाते हो तुम यूँ सरपट गुलाम अब्बास खान

क्यों कहीं बैठ के दम लेते नहीं एक घड़ी

किस तरफ़ दौड़े चले जाते हो तुम यूँ सरपट अज्ञात

क्यों मिलाते हो सर-ए-राह सर-ए-आम आँखें

सुरेश वाडेकर

क्यों मिलाते हो सर-ए-राह सर-ए-आम आँखें

गुलाम अब्बास खान

क्यों ये हसरत थी दिल लगाने की

ग़ुलाम अब्बास

करो दाग़-ए-दिल की सदा पासबानी

अज्ञात

करो लाख मुँह से नहीं नहीं

करो लाख मुँह से नहीं नहीं ग़ुलाम अब्बास

काम पड़ा याद आया मौला है ये तर्ज़-ए-इबादत कैसी

ग़ुलाम अब्बास

किया क्या ऐ 'सदा' तू ने बता आ कर ज़माने में

किया क्या ऐ सदा तू ने बता आ कर ज़माने में अज्ञात

किसी सलीम से जब है कोई ख़ता होती

अज्ञात

कोई वाक़ि'आ हो या हादिसा कहूँ कैसे मैं कि बुरा हुआ

ग़ुलाम अब्बास

कोंपल कहीं फूटी है तो टूटी कहीं डाली

ग़ुलाम अब्बास

ख़दशा था जिस के होने का आख़िर है हो गया

ग़ुलाम अब्बास

गुल-नामा

खिल के हँसता है महकता है बिखर जाता है गुल गुलाम अब्बास खान

गुलशन-गुलशन ज़िक्र है उन का

ग़ुलाम अब्बास

छुपता नहीं नक़ाब में जल्वा शबाब का

अज्ञात

छुपता नहीं नक़ाब में जल्वा शबाब का

ग़ुलाम अब्बास

छम-छमा-छम छम

छम-छमा-छम छमम छम-छमा-छम छमम गुलाम अब्बास खान

ज़ुल्फ़ लहरा के फ़ज़ा पहले मोअत्तर कर दे

गुलाम अब्बास खान

जा रे जा बदरा

जा रे जा बदरा गुलाम अब्बास खान

जा रे जा बदरा

जा रे जा बदरा राधिका चोपड़ा

जी में है तोड़ दें सुबू और गिरा दें जाम ये

ग़ुलाम अब्बास

त'आरुफ़

नहीं मुमकिन मिटाना मुझ को मिस्ल-ए-नक़श-ए-पा यारो अज्ञात

तबी'अत रफ़्ता रफ़्ता ख़ूगर-ए-ग़म होती जाती है

ग़ुलाम अब्बास

दु'आ

दौलत जहाँ की मुझ को तू मेरे ख़ुदा न दे अज्ञात

दु'आ

दौलत जहाँ की मुझ को तू मेरे ख़ुदा न दे अहमद हुसैन, मोहम्मद हुसैन

दु'आ

दौलत जहाँ की मुझ को तू मेरे ख़ुदा न दे गुलाम अब्बास खान

दु'आ

दौलत जहाँ की मुझ को तू मेरे ख़ुदा न दे सुरेश वाडेकर

दु'आ

दौलत जहाँ की मुझ को तू मेरे ख़ुदा न दे राधिका चोपड़ा

दुनिया में रह के दुनिया में शामिल नहीं हूँ मैं

अज्ञात

दसहरा

हर साल जलाते हो रावन अज्ञात

दिल के कहने पर चल निकला

अज्ञात

दिल के कहने पर चल निकला

सुरेश वाडेकर

दिल के कहने पर चल निकला

अज्ञात

दिल के कहने पर चल निकला

अज्ञात

दिल न माना मना के देख लिया

गुलाम अब्बास खान

न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है

अज्ञात

न हीरे जवाहिर न ज़र बख़्श मौला

ग़ुलाम अब्बास

न हीरे जवाहिर न ज़र बख़्श मौला

सुरेश वाडेकर

नज़र का अपनी नज़रिया बदल के देख ज़रा

ग़ुलाम अब्बास

नज़र ने कर दिया ग़ाएब दिखाया दिल ने जो जल्वा

अज्ञात

नज़र-नज़र में डार कर दिल-ओ-जिगर पे वार कर

नज़र-नज़र में डार कर दिल-ओ-जिगर पे वार कर गुलाम अब्बास खान

निगाह ख़ुद पे टिकी थी तो और क्या दिखता

ग़ुलाम अब्बास

निगाह ख़ुद पे टिकी थी तो और क्या दिखता

अज्ञात

नींद आई ही नहीं हम को न पूछो कब से

ग़ुलाम अब्बास

नींद आई ही नहीं हम को न पूछो कब से

अज्ञात

पत्ता पत्ता क्यों है दिल अफ़गार इस गुलज़ार का

अज्ञात

फिर भी अपना देश है चंगा

आधा भूका आधा नंगा अज्ञात

बे-क़रारी जो इधर है वो उधर है कि नहीं

ग़ुलाम अब्बास

बूँद की चाह

है चाह गिरूँ सीधे मुख में ग़ुलाम अब्बास

बला से अपनी अब आती रहे बहार कभी

ग़ुलाम अब्बास

मंज़र-ए-रुख़्सत-ए-दिलदार भुलाया न गया

अज्ञात

मत कह बुरा किसी को जो कोई बुरा भी है

ग़ुलाम अब्बास

मुदाम चलना है मुश्किल तो मेरे साथ न चल

गुलाम अब्बास खान

मुदाम चलना है मुश्किल तो मेरे साथ न चल

सुरेश वाडेकर

मिरे साक़िया सुराही मिरे हाथ में थमा दे

ग़ुलाम अब्बास

मिरी तौबा जो टूटी है शरारत सब फ़ज़ा की है

अज्ञात

मिली दिल की अपने ख़बर सनम तुझे दिल में जब से बसा लिया

अज्ञात

मिली दिल की अपने ख़बर सनम तुझे दिल में जब से बसा लिया

गुलाम अब्बास खान

ये ग़ज़ाल सी निगाहें ये शबाब ये अदाएँ

अज्ञात

ये ग़ज़ाल सी निगाहें ये शबाब ये अदाएँ

ग़ुलाम अब्बास

ये ग़ज़ाल सी निगाहें ये शबाब ये अदाएँ

अज्ञात

ये ग़ज़ाल सी निगाहें ये शबाब ये अदाएँ

राधिका चोपड़ा

ये ग़ज़ाल सी निगाहें ये शबाब ये अदाएँ

अज्ञात

ये झुकी-झुकी सी नज़र सनम

ये झुकी-झुकी सी नज़र सनम ये सवाल है कि जवाब है गुलाम अब्बास खान

रहबर ही न बन दोस्त का भी फ़र्ज़ निभा दोस्त

ग़ुलाम अब्बास

लाख तक़दीर पे रोए कोई रोने वाला

अज्ञात

लोग कहें दीवाना तुझ को तू समझे तू दाना है

ग़ुलाम अब्बास

वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे

ग़ुलाम अब्बास

शहर में मिलते हैं मुश्किल से कहीं चार काँधे भी उठाने के लिए

ग़ुलाम अब्बास

शहर में मिलते हैं मुश्किल से कहीं चार काँधे भी उठाने के लिए

ग़ुलाम अब्बास

सब दवाएँ तो हुईं अब ये दु'आ हो जाए

ग़ुलाम अब्बास

सब से प्यारा है प्यार का रिश्ता

अज्ञात

साक़िया लुत्फ़ मय का जब आए

ग़ुलाम अब्बास

साथ क्या सच का दे दिया हम ने

ग़ुलाम अब्बास

सामने जब है आइना होता

ग़ुलाम अब्बास

सितारों की दुनिया से बाहर निकल के

गुलाम अब्बास खान

हक़ की है गर तलाश तो ये मान कर चलो

अज्ञात

हज़रत अमीर ख़ुसरव की नज़्म का तख़लीक़ी तर्जुमा

मैं ने जब पूछा कि रौशन चाँद से बढ़ कर है क्या गुलाम अब्बास खान

हम से हुई कि आप से ये बहस है फ़ुज़ूल

ग़ुलाम अब्बास

हर फ़िक्र से बेगाना-ओ-अंजान बना दे

ग़ुलाम अब्बास

हँसते-हँसते न सही रो के ही कट जाने दो

अज्ञात

हस्ती मिटा कर अपनी जब इक बूँद सागर में गिरी

ग़ुलाम अब्बास

हार में फँस के लटकने में मज़ा क्या है बता

ग़ुलाम अब्बास

अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले

गुलाम अब्बास खान

अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले

सदा अम्बालवी

चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं

गुलाम अब्बास खान

चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं

सदा अम्बालवी

यूँ तो इक 'उम्र साथ साथ हुई

राधिका चोपड़ा

यूँ तो इक 'उम्र साथ साथ हुई

गुलाम अब्बास खान

यूँ तो इक 'उम्र साथ साथ हुई

सदा अम्बालवी

वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे

राधिका चोपड़ा

वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे

सदा अम्बालवी

वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे

सुरेश वाडेकर

वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे

गुलाम अब्बास खान

वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे

सदा अम्बालवी

"गुड़गाँव" के और शायर

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Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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