फ़ातिमा हसन
ग़ज़ल 22
नज़्म 9
अशआर 26
उस के प्याले में ज़हर है कि शराब
कैसे मालूम हो बग़ैर पिए
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दिखाई देता है जो कुछ कहीं वो ख़्वाब न हो
जो सुन रही हूँ वो धोका न हो समाअत का
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पूरी न अधूरी हूँ न कम-तर हूँ न बरतर
इंसान हूँ इंसान के मेआर में देखें
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बिछड़ रहा था मगर मुड़ के देखता भी रहा
मैं मुस्कुराती रही मैं ने भी कमाल किया
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