आबिद मलिक
ग़ज़ल 12
अशआर 10
हज़ार ताने सुनेगा ख़जिल नहीं होगा
ये वो हुजूम है जो मुश्तइल नहीं होगा
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ज़ख़्म और पेड़ ने इक साथ दुआ माँगी है
देखिए पहले यहाँ कौन हरा होता है
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पूछता फिरता हूँ मैं अपना पता जंगल से
आख़िरी बार दरख़्तों ने मुझे देखा था
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