मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल 51
नज़्म 37
अशआर 33
सुनता हूँ कि तुझ को भी ज़माने से गिला है
मुझ को भी ये दुनिया नहीं रास आई इधर आ
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रोती हुई एक भीड़ मिरे गिर्द खड़ी थी
शायद ये तमाशा मिरे हँसने के लिए था
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मुझ से मत बोलो मैं आज भरा बैठा हूँ
सिगरेट के दोनों पैकेट बिल्कुल ख़ाली हैं
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शुक्रिया रेशमी दिलासे का
तीर तो आप ने भी मारा था
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खिलते हैं दिल में फूल तिरी याद के तुफ़ैल
आतिश-कदा तो देर हुई सर्द हो गया
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