मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल 96
अशआर 45
बाप का है फ़ख़्र वो बेटा कि रखता हो कमाल
देख आईने को फ़रज़ंद-ए-रशीद-ए-संग है
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आह क़ासिद तो अब तलक न फिरा
दिल धड़कता है क्या हुआ होगा
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हवास-ओ-होश को छोड़ आप दिल गया उस पास
जब अहल-ए-फ़ौज ही मिल जाएँ क्या सिपाह करे
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ख़ुशी है सब को रोज़-ए-ईद की याँ
हुए हैं मिल के बाहम आश्ना ख़ुश
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