बेचैनी पर ग़ज़लें
दुनिया बेचैनियों के
ज़ह्र से बनी है शायद ही कोई शख़्स ऐसा मिले जिस ने इसका कड़वा ज़ह्र न चखा हो। लेकिन इस बेचैनी या तड़प के पीछे किसी महबूब का तसव्वुर हो तो बेचैनी से भी मोहब्बत हो जाना लाज़िमी है। अगर ये बेचैनी शायर के हिस्से में आ जाए तो क्या कहने। दिल की गहराइयों में उतरने वाले ऐसे ऐसे आशआर आने लगते हैं जिनकी कसक हमेशा याद रहती है, ऐसी होती है बेचैनी शायरीः