चराग़ हसन हसरत के शेर
ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम ने
कुछ हम से कहा होता कुछ हम से सुना होता
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इक इश्क़ का ग़म आफ़त और उस पे ये दिल आफ़त
या ग़म न दिया होता या दिल न दिया होता
उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती
वा'दा न वफ़ा करते वा'दा तो किया होता
रात की बात का मज़कूर ही क्या
छोड़िए रात गई बात गई
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टैग : रात
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आओ हुस्न-ए-यार की बातें करें
ज़ुल्फ़ की रुख़्सार की बातें करें
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टैग : हुस्न
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क़ुबूल इस बारगह में इल्तिजा कोई नहीं होती
इलाही या मुझी को इल्तिजा करना नहीं आता
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टैग : इल्तिजा
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या-रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता
जो हाथ जिगर पर है वो दस्त-ए-दुआ होता
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इस तरह कर गया दिल को मिरे वीराँ कोई
न तमन्ना कोई बाक़ी है न अरमाँ कोई
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उमीद-ए-वस्ल ने धोके दिए हैं इस क़दर 'हसरत'
कि उस काफ़िर की हाँ भी अब नहीं मालूम होती है
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