शुक्रिया ऐ क़ब्र तक पहुँचाने वालो शुक्रिया
अब अकेले ही चले जाएँगे इस मंज़िल से हम
उस मेहरबाँ नज़र की इनायत का शुक्रिया
तोहफ़ा दिया है ईद पे हम को जुदाई का
शुक्रिया तेरा तिरे आने से रौनक़ तो बढ़ी
वर्ना ये महफ़िल-ए-जज़्बात अधूरी रहती
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ख़तों को खोलती दीमक का शुक्रिया वर्ना
तड़प रही थी लिफ़ाफ़ों में बे-ज़बानी पड़ी
शुक्रिया रेशमी दिलासे का
तीर तो आप ने भी मारा था
शुक्रिया वाइज़ जो मुझ को तर्क-ए-मय की दी सलाह
ग़ौर मैं इस पर करूँगा होश में आने के बाद
कहाँ के माहिर-ओ-कामिल हो तुम हुनर में 'अदील'
तुम्हारे काम तो पर्वरदिगार करता है
शुक्रिया तुम ने बुझाया मिरी हस्ती का चराग़
तुम सज़ा-वार नहीं तुम ने तो अच्छाई की
ऐ बे-ख़ुदी सलाम तुझे तेरा शुक्रिया
दुनिया भी मस्त मस्त है उक़्बा भी मस्त मस्त
शुक्रिया ऐ गर्दिश-ए-जाम-ए-शराब
मैं भरी महफ़िल में तन्हा हो गया