मेंहदी पर शेर
उर्दू शायरी का माशूक़
अपनी सादगी में भी उतना ही हसीन लगता है जितना सोलह सिंगार करने के बाद। मेंहदी वो सिंगार है जिसे शायरों ने कभी आशिक़ का ख़ून कह कर तो कभी न आने के बहाने के तौर पर शायरी मे पिरोया है। हिना की दिलकशी ने सिर्फ़ महबूब को ही नहीं उर्दू शायरी को भी हुस्न की दौलत से मालामाल किया है। हिना की सुर्ख़ी के पर्दे में शायर को क्या-क्या नज़र आता है यह जानने के लिए हिना शायरी का यह इन्तिख़ाब आप की नज़्रः
दोनों का मिलना मुश्किल है दोनों हैं मजबूर बहुत
उस के पाँव में मेहंदी लगी है मेरे पाँव में छाले हैं
मेहंदी लगाए बैठे हैं कुछ इस अदा से वो
मुट्ठी में उन की दे दे कोई दिल निकाल के
मेहंदी लगाने का जो ख़याल आया आप को
सूखे हुए दरख़्त हिना के हरे हुए
लब-ए-नाज़ुक के बोसे लूँ तो मिस्सी मुँह बनाती है
कफ़-ए-पा को अगर चूमूँ तो मेहंदी रंग लाती है
अल्लाह-रे नाज़ुकी कि जवाब-ए-सलाम में
हाथ उस का उठ के रह गया मेहंदी के बोझ से
मल रहे हैं वो अपने घर मेहंदी
हम यहाँ एड़ियाँ रगड़ते हैं
हम गुनहगारों के क्या ख़ून का फीका था रंग
मेहंदी किस वास्ते हाथों पे रचाई प्यारे
कुश्ता-ए-रंग-ए-हिना हूँ मैं अजब इस का क्या
कि मिरी ख़ाक से मेहंदी का शजर पैदा हो
मेहंदी के धोके मत रह ज़ालिम निगाह कर तू
ख़ूँ मेरा दस्त-ओ-पा से तेरे लिपट रहा है