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आसी ग़ाज़ीपुरी

1834 - 1917 | ग़ाज़ीपुर, भारत

सूफ़ियाना विचारधारा के लोकप्रिय शायर

सूफ़ियाना विचारधारा के लोकप्रिय शायर

आसी ग़ाज़ीपुरी

ग़ज़ल 18

अशआर 16

इश्क़ कहता है दो-आलम से जुदा हो जाओ

हुस्न कहता है जिधर जाओ नया आलम है

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जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई

फिर फँसा ज़ुल्फ़ों में दिल फिर वही आफ़त आई

बीमार-ए-ग़म की चारागरी कुछ ज़रूर है

वो दर्द दिल में दे कि मसीहा कहें जिसे

लब-ए-नाज़ुक के बोसे लूँ तो मिस्सी मुँह बनाती है

कफ़-ए-पा को अगर चूमूँ तो मेहंदी रंग लाती है

वो यहाँ तक जो नहीं सकते

क्या मुझे भी बुला नहीं सकते

नअत 1

 

पुस्तकें 2

 

चित्र शायरी 2

 

ऑडियो 6

इतना तो जानते हैं कि आशिक़ फ़ना हुआ

ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई

कलेजा मुँह को आता है शब-ए-फ़ुर्क़त जब आती है

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