आसी ग़ाज़ीपुरी
ग़ज़ल 18
अशआर 16
ऐ जुनूँ फिर मिरे सर पर वही शामत आई
फिर फँसा ज़ुल्फ़ों में दिल फिर वही आफ़त आई
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दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे
मैं ने जब की आह उस ने वाह की
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लब-ए-नाज़ुक के बोसे लूँ तो मिस्सी मुँह बनाती है
कफ़-ए-पा को अगर चूमूँ तो मेहंदी रंग लाती है
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