मौसम पर शेर
मौसम की ख़ुशगवारी और
इस की बे-दर्दी को शायरी में अलग अलग तरीक़ों से बर्ता गया है। हमारे इस इन्तिख़ाब में आप देखेंगे कि मौसम दोस्त भी है और दुश्मन भी। साथ ही शायरी में मौसम की रूमान-पर्वर फ़ज़ा से पैदा होने वाले इश्क़िया जज़्बात को भी मौज़ू बनाया गया है। आप को हमारा ये इन्तिख़ाब पसंद आएगा।
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे
जो उन मासूम आँखों ने दिए थे
वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था
सर्दी में दिन सर्द मिला
हर मौसम बेदर्द मिला
बिखरी ज़ुल्फ़ों ने सिखाई मौसमों को शाइ'री
झुकती आँखों ने बताया मय-कशी क्या चीज़ है
बैठे बैठे फेंक दिया है आतिश-दान में क्या क्या कुछ
मौसम इतना सर्द नहीं था जितनी आग जला ली है
आती जाती है जा-ब-जा बदली
साक़िया जल्द आ हवा बदली
वो लोग मेरे बहुत प्यार करने वाले थे
गुज़र गए हैं जो मौसम गुज़रने वाले थे
मौसम ने खेत-खेत उगाई है फ़स्ल-ए-ज़र्द
सरसों के खेत हैं के जो पीले नहीं रहे
बहुत से ग़म दिसम्बर में दिसम्बर के नहीं थे
उसे भी जून का ग़म था मगर रोया दिसम्बर में