मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा
पहाड़ काटने वाले ज़मीं से हार गए
इसी ज़मीन में दरिया समाए हैं क्या क्या
अब के मिली शिकस्त मिरी ओर से मुझे
जितवा दिया गया किसी कमज़ोर से मुझे
हम आज राह-ए-तमन्ना में जी को हार आए
न दर्द-ओ-ग़म का भरोसा रहा न दुनिया का
दिल सा वहशी कभी क़ाबू में न आया यारो
हार कर बैठ गए जाल बिछाने वाले
यरान-ए-बे-बिसात कि हर बाज़ी-ए-हयात
खेले बग़ैर हार गए मात हो गई
दुश्मन मुझ पर ग़ालिब भी आ सकता है
हार मिरी मजबूरी भी हो सकती है
वो इंतिक़ाम की आतिश थी मेरे सीने में
मिला न कोई तो ख़ुद को पछाड़ आया हूँ
बहुत ग़ुरूर था सूरज को अपनी शिद्दत पर
सो एक पल ही सही बादलों से हार गया