बेदिल हैदरी
ग़ज़ल 11
अशआर 12
हम तुम में कल दूरी भी हो सकती है
वज्ह कोई मजबूरी भी हो सकती है
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गर्मी लगी तो ख़ुद से अलग हो के सो गए
सर्दी लगी तो ख़ुद को दोबारा पहन लिया
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रात को रोज़ डूब जाता है
चाँद को तैरना सिखाना है
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ख़ोल चेहरों पे चढ़ाने नहीं आते हम को
गाँव के लोग हैं हम शहर में कम आते हैं
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