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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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ग़म पर चित्र/छाया शायरी

ग़म हमारी ज़िंदगी का एक

अनिवार्य रंग है और इस को कई तरह से स्थायित्व हासिल है । हालाँकि ख़ुशी भी हमारी ज़िंदगी का ही एक रंग है लेकिन इस को उस तरह से स्थायित्व हासिल नहीं है । उर्दू शायरी में ग़म-ए-दौराँ, ग़म-ए-जानाँ, ग़म-ए-इश्क़, गम-ए-रोज़गार जैसे शब्द-संरचना या मिश्रित शब्द-संरचना का प्रयोग अधिक होता है । उर्दू शायरी का ये रूप वास्तव में ज़िंदगी का एक दुखद वर्णन है । विरह या जुदाई सिर्फ़ आशिक़ का अपने माशूक़ से भौतिक-सुख या शारीरिक स्पर्श का न होना ही नहीं बल्कि इंसान की बद-नसीबी / महरूमी का रूपक है हमारा यह चयन ग़म और दुख के व्यापक क्षेत्र की एक सैर है।

ग़म मुझे देते हो औरों की ख़ुशी के वास्ते

सुकून दे न सकीं राहतें ज़माने की

सुकून दे न सकीं राहतें ज़माने की

क्या कहूँ किस तरह से जीता हूँ

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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