इक़बाल साजिद
ग़ज़ल 43
अशआर 36
अपनी अना की आज भी तस्कीन हम ने की
जी भर के उस के हुस्न की तौहीन हम ने की
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सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा
मैं डूब भी गया तो शफ़क़ छोड़ जाऊँगा
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वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा
किरदार ख़ुद उभर के कहानी में आएगा
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प्यासो रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर
मारो ज़मीं पे पाँव कि पानी निकल पड़े
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पिछले बरस भी बोई थीं लफ़्ज़ों की खेतियाँ
अब के बरस भी इस के सिवा कुछ नहीं किया
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चित्र शायरी 5
वीडियो 7
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