Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

जब्र पर शेर

जब्र अर्थात वो सब कुछ

जो मर्ज़ी के ख़िलाफ़ थोप दिया जाता है । इसलिए इस को इंसान के इख़्तियार अर्थात उस के अधिकार से विरोधाभास के तौर पर जब्र का नाम दिया गया है । इंसान जितना ख़ुद-मुख़्तार है उतना ही मजबूर भी है । विद्वानों के अनुसार इख़्तियार जब्र की वजह से है दर-अस्ल जो कुछ हम सोचते हैं और करते हैं वो एक तरह के जब्र की वजह से ही है । यहाँ प्रस्तुत संकलन में जब्र के व्यापक रूक को समाजी, सियासी, तारीख़ी, मज़हबी और तहज़ीबी सूरतों देखा जा सकत है ।

ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने

लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई

मुज़फ़्फ़र रज़्मी

ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं

हाए इस क़ैद को ज़ंजीर भी दरकार नहीं

फ़ानी बदायुनी

मैं हूँ भी और नहीं भी अजीब बात है ये

ये कैसा जब्र है मैं जिस के इख़्तियार में हूँ

मुनीर नियाज़ी

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए