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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

सरहद पर शेर

सरहद को मौज़ू बनाने वाली

ये शायरी सरहद के ज़रिये किए गए हर क़िस्म की तक़्सीम को नकारती है और मोहब्बत के एक ऐसे पैग़ाम को आम करती जो ज़मीन के तमाम हिस्सों में रहने वाले लोगों को एक रिश्ते में जोड़ता है। तक़्सीम के बाद शोरा ने सरहद और इस से जन्म लेने वाले मसाएल को कसरत से बरता है। यहाँ हम ऐसी शायरी का एक इंतिख़ाब पेश कर रहे हैं।

मोहब्बत की तो कोई हद, कोई सरहद नहीं होती

हमारे दरमियाँ ये फ़ासले, कैसे निकल आए

ख़ालिद मोईन

सरहदें अच्छी कि सरहद पे रुकना अच्छा

सोचिए आदमी अच्छा कि परिंदा अच्छा

इरफ़ान सिद्दीक़ी

रौशनी बाँटता हूँ सरहदों के पार भी मैं

हम-वतन इस लिए ग़द्दार समझते हैं मुझे

शाहिद ज़की

उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता

जिस मुल्क की सरहद की निगहबान हैं आँखें

अज्ञात

जैसे दो मुल्कों को इक सरहद अलग करती हुई

वक़्त ने ख़त ऐसा खींचा मेरे उस के दरमियाँ

मोहसिन ज़ैदी

हमारा ख़ून का रिश्ता है सरहदों का नहीं

हमारे ख़ून में गँगा भी चनाब भी है

कँवल ज़ियाई

सरहदें रोक पाएँगी कभी रिश्तों को

ख़ुश्बूओं पर कभी कोई भी पहरा निकला

अज्ञात

ज़मीं को ख़ुदा वो ज़लज़ला दे

निशाँ तक सरहदों के जो मिटा दे

परवीन कुमार अश्क

शहर-ए-लाहौर से कुछ दूर नहीं है देहली

एक सरहद है किसी वक़्त भी मिट सकती है

अज्ञात

दिलों के बीच दीवार है सरहद है

दिखाई देते हैं सब फ़ासले नज़र के मुझे

ज़फ़र सहबाई

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