की मिरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा
हाए उस ज़ूद-पशीमाँ का पशीमाँ होना
ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है
ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा
ख़ुदा के वास्ते इस को न टोको
यही इक शहर में क़ातिल रहा है
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जब लगें ज़ख़्म तो क़ातिल को दुआ दी जाए
है यही रस्म तो ये रस्म उठा दी जाए
मेरे होने में किसी तौर से शामिल हो जाओ
तुम मसीहा नहीं होते हो तो क़ातिल हो जाओ
क़ातिल ने किस सफ़ाई से धोई है आस्तीं
उस को ख़बर नहीं कि लहू बोलता भी है
शहर के आईन में ये मद भी लिक्खी जाएगी
ज़िंदा रहना है तो क़ातिल की सिफ़ारिश चाहिए
यूँ न क़ातिल को जब यक़ीं आया
हम ने दिल खोल कर दिखाई चोट
क़त्ल हो तो मेरा सा मौत हो तो मेरी सी
मेरे सोगवारों में आज मेरा क़ातिल है
ये सच है चंद लम्हों के लिए बिस्मिल तड़पता है
फिर इस के बअ'द सारी ज़िंदगी क़ातिल तड़पता है
कौन पुरसाँ है हाल-ए-बिस्मिल का
ख़ल्क़ मुँह देखती है क़ातिल का