संपूर्ण
परिचय
ग़ज़ल46
नज़्म17
शेर32
ई-पुस्तक46
चित्र शायरी 23
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क़ितआ32
गेलरी 15
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अन्य
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल 46
नज़्म 17
अशआर 32
ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं
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लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
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सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी
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और क्या इस से ज़ियादा कोई नर्मी बरतूँ
दिल के ज़ख़्मों को छुआ है तिरे गालों की तरह
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अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं
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क़ितआ 32
पुस्तकें 46
चित्र शायरी 23
ज़िंदगी तुझ को भुलाया है बहुत दिन हम ने वक़्त ख़्वाबों में गँवाया है बहुत दिन हम ने अब ये नेकी भी हमें जुर्म नज़र आती है सब के ऐबों को छुपाया है बहुत दिन हम ने तुम भी इस दिल को दुखा लो तो कोई बात नहीं अपना दिल आप दुखाया है बहुत दिन हम ने मुद्दतों तर्क-ए-तमन्ना पे लहू रोया है इश्क़ का क़र्ज़ चुकाया है बहुत दिन हम ने क्या पता हो भी सके इस की तलाफ़ी कि नहीं शायरी तुझ को गँवाया है बहुत दिन हम ने
आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो जब शाख़ कोई हाथ लगाते ही चमन में शरमाए लचक जाए तो लगता है कि तुम हो संदल से महकती हुई पुर-कैफ़ हवा का झोंका कोई टकराए तो लगता है कि तुम हो ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर नद्दी कोई बल खाए तो लगता है कि तुम हो जब रात गए कोई किरन मेरे बराबर चुप-चाप सी सो जाए तो लगता है कि तुम हो