उस से कहना कि धुआँ देखने लाएक़ होगा
आग पहने हुए जाउँगा मैं पानी की तरफ़
उबलते वक़्त पानी सोचता होगा ज़रूर
अगर बर्तन न होता तो बताता आग को
अक़्ल हर बार दिखाती थी जले हाथ अपने
दिल ने हर बार कहा आग पराई ले ले
औरों की आग क्या तुझे कुंदन बनाएगी
अपनी भी आग में कभी चुप-चाप जल के देख
अपने जलने का हमेशा से तमाशाई हूँ
आग ये किस ने लगाई मुझे मालूम नहीं
मेरे होने से न होना है मिरा
आग जलने से धुआँ आबाद है
सर्द रातों का तक़ाज़ा था बदन जल जाए
फिर वो इक आग जो सीने से लगाई मैं ने