हसीन चीज़ एक दायमी मुसर्रत है। आर्ट जहां भी मिले हमें उसकी क़दर करनी चाहिए।
मैं अदब और फ़िल्म को एक ऐसा मय-ख़ाना समझता हूँ, जिसकी बोतलों पर कोई लेबल नहीं होता।
मेरे अफ़साने तंदुरुस्त और सेहत-मंद लोगों के लिए हैं। नॉर्मल इन्सानों के लिए, जो औरत के सीने को औरत का सीना ही समझते हैं और इससे ज़्यादा आगे नहीं बढ़ते।
गुनाह या सवाब इंसान की ज़ात से मुताल्लिक़ है, इस से फ़न को कोई वास्ता नहीं।
ऐक्ट्रेस चकले की वेश्या हो या किसी बा-इज़्ज़त और शरीफ़ घराने की औरत, मेरी नज़रों में वो सिर्फ़ ऐक्ट्रेस है। उसकी शराफ़त या रज़ालत से मुझे कोई सरोकार नहीं। इसलिए कि फ़न इन ज़ाती उमूर से बहुत बालातर है।
आर्ट ख़्वाह वो तस्वीर की सूरत में हो या मुजस्समे की शक्ल में। सोसाइटी के लिए क़तई तौर पर एक पेशकश है।
हिन्दुस्तान में अभी तक आर्टिस्ट के सही मआनी पेश नहीं किए गए। आर्ट को ख़ुदा मालूम क्या चीज़ समझा जाता है। यहाँ आर्ट एक रंग से भरा हुआ बर्तन है जिसमें हर शख़्स अपने कपड़े भिगो लेता है, लेकिन आर्ट ये नहीं है और ना वो तमाम लोग आर्टिस्ट हैं जो अपने माथों पर लेबल लगाए फिरते हैं। हिन्दुस्तान में जिस चीज़ को आर्ट कहा जाता है, अभी तक मैं उस के मुताल्लिक़ फ़ैसला ही नहीं कर सका कि वो क्या है?
हिन्दुस्तान में जिस चीज़ को आर्ट कहा जाता है, अभी तक मैं उसके मुताल्लिक़ फ़ैसला ही नहीं कर सका कि वो क्या है?