तजाहुल पर शेर
किसी बात को जान कर भी
अन्जान बने रहने का अन्दाज़ उर्दू शायरी के महबूब की अदा होती है। उसे आशिक़ की मोहब्बत, उसकी कसक और तड़प का बख़ूबी इल्म होता है लेकिन अन्जान बने रहना माशूक़ को रास आता है। चाहने वाले की बेचारगी और तड़प पर मन ही मन में मुस्कुराते रहना तजाहुल शायरी में झलक आता है।
मिरा ख़त उस ने पढ़ा पढ़ के नामा-बर से कहा
यही जवाब है इस का कोई जवाब नहीं
भरी दुनिया में फ़क़त मुझ से निगाहें न चुरा
इश्क़ पर बस न चलेगा तिरी दानाई का
उन्हें तो सितम का मज़ा पड़ गया है
कहाँ का तजाहुल कहाँ का तग़ाफ़ुल