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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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महशर पर शेर

महशर एक मज़हबी इस्तिलाह

है ये तसव्वुर उस दिन के लिए इस्तेमाल होता है जब दुनिया फ़ना हो जाएगीगी और इन्सानों से उनके आमाल का हिसाब लिया जाएगा। मज़हबी रिवायात के मुताबिक़ ये एक सख़्त दिन होगा। एक हंगामा बर्पा होगा। लोग एक दूसरे से भाग रहे होंगे सबको अपनी अपनी पड़ी होगी। महशर का शेरी इस्तेमाल उस के इस मज़हबी सियाक़ में भी हुआ है और साथ ही माशूक़ के जल्वे से बर्पा होने वाले हंगामे के लिए भी। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए।

बड़ा मज़ा हो जो महशर में हम करें शिकवा

वो मिन्नतों से कहें चुप रहो ख़ुदा के लिए

दाग़ देहलवी

हमें मालूम है हम से सुनो महशर में क्या होगा

सब उस को देखते होंगे वो हम को देखता होगा

जिगर मुरादाबादी

देखें महशर में उन से क्या ठहरे

थे वही बुत वही ख़ुदा ठहरे

आरज़ू लखनवी

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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